वनौषधी हुरहुर के विविध चमत्कारिक और स्वास्थ्य बर्धक लाभ..

नागपुर – वर्तमान परिवेश में मनुष्य अत्यंत भागदौड और व्यस्ततम जीवन में नैसर्गिक नियम संयम को भुला बैठा है. परिणामतः मनुष्य विविध रोग राई ग्रह व्याधियों से ग्रासित होने के कारण मनुष्य के पीछे मृत्यू बडी तेजी से पीछा कर रही है.और उसका निराकरण एवं निवारणार्थ निसर्ग परमात्मा के द्वारा धरती मे हुर हुर नामक दुर्लभ और अनमोल वनौषधी उपलब्ध करवाया है. जिसका लाभ विधिवत उपयोग से मनुष्य अपने जीवन को निरोगी बनाने मे उपयोग कर सकता हैं.तो आइये हम वनौषधी हुर हुर के संबंध में सामान्य ज्ञान विवरण पर प्रकाश डाल रहे है.

हुर हुर का विविध भाषाओं मे नाम:-

अंग्रेज़ी में नाम : Dog mustard (डॉग मस्टर्ड)

संस्कृत-पीतपुष्पा, तिलपर्णी, पूतिगंधा, उग्रगन्धा, ब्रह्मसुवर्चला; हिन्दी-हुरहुर पीला; उड़िया-जंगली जीरा (Jangali jira); उर्दू-हुलहुल (Hulhul); असमिया-भूतमाला (Bhutmala); कन्नड़-नाबल्ली (Naballi), नयीबेला (Nayibela); गुजराती-तलवानी (Talvani), तिलवन (Tilwan); तमिल-नयीक्काडूगू (Nayikkadugu); तेलुगु-कूखावोमीन्टा (Kukhavominta); बंगाली-हुरहुरिया (Hurhuria); पंजाबी-बुगरा (Bugra), हुलहुल (Hulhul); मराठी-पिवली (Peevali), तिलवण (Tilvan), कानफोड़ी (Kanphodi); मलयालम-ऐरियाविला (Ariavila)। अंग्रेजी-वाईल्ड मस्टर्ड (Wild mustard), टिकवीड (Tickweed), क्लेम्मी वीड (Clammy weed); अरबी-बनटकलन (Bantakalan)।

श्वेत हुरहुर के नाम (Cleome gynandra Linn.)

संस्कृत-हुरहुर, श्वेत पूतिगन्धा, श्वेत उग्रगन्धा, सुवर्चला; हिन्दी-हुरहुर सफेद, करेलिआ, चमनी; कोंकणी-शीरकाल (Shirkala); कन्नड़-श्रीकाल (Shrikaala); गुजराती-धोली तलवर्णा (Dholi talvarna); तमिल-नालवेलाई (Nalvelai), कडुगु (Kadugu), वेलै (Velai); तेलुगु-वामिन्टा (Vaminta); बंगाली-हुरहुरिया (Hurhuriya), अर्कहूली (Arkahuli); मराठी-हुलहुल (Hulhul), मबलीकलवन (Mablikalvana), तिलवण (Tilavana), भाटवण (Bhatvan); मलयालम-करवेला (Karavela), तैवेला (Teivela)। अंग्रेजी-बास्टर्ड मस्टर्ड (Bastard mustard), काफिर कैबेज (Kaffir-cabbage), स्पाइडर फ्लावर (Spider flower); अरबी-अबु क्यूअर्न (Abu qarn)।

परिचय

यह वनस्पति समस्त भारत में परती भूमि में खरपतवार के रूप में प्राप्त होती है। पुष्पभेद के आधार पर इसकी दो प्रजातियां होती हैं। 1. हुरहुर श्वेत 2. हुरहुर पीत।

हुरहुर पीत (Cleome viscosa Linn.) यह 30-90 सेमी तक ऊँचा, दृढ़, तीक्ष्ण एवं पूतिगंधयुक्त, सीधा, चिपचिपा शाकीय पौधा होता है। इसके पुष्प पीत वर्ण के होते हैं।

हुरहुर श्वेत (Cleome gynandra Linn.)

यह 30-90 सेमी ऊँचा, शाखित, ग्रन्थिल-रोमश शाकीय पौधा होता है। इसकी काण्ड एवं शाखाएँ रेखित, श्वेत वर्ण के फैले हुए रोमों से आवृत होती हैं। इसके पुष्प श्वेत वर्ण के होते हैं। इसकी फलियाँ 5-10 सेमी लम्बी, 4.5 मिमी व्यास की चिपचिपी तथा रोमश होती हैं। इसके बीज गहरे भूरे से कृष्ण वर्ण के तथा खुरदरे, वृक्काकार होते हैं।

आयुर्वेदीय गुण-कर्म एवं प्रभाव

पीली हुरहुर कटु, तिक्त, कषाय, उष्ण, रूक्ष, लघु, कफवातशामक, ग्राही, रुचिकारक, सर, तीक्ष्ण, विदाही तथा स्वेदल होती है।

यह श्वास, कास, अरुचि, ज्वर, विस्फोट, कुष्ठ, प्रमेह, योनिरोग, मूत्रकृच्छ्र, शोफ, कृमि, शूल, रक्तपित्त, कृमिरोग तथा पाण्डुनाशक होती है।

इसके बीज उष्ण वीर्य, जठराग्निदीपक, गुल्म, अनाह, आमदोष, शूल, कफहर तथा वातज्वरशामक होते हैं।

हुरहुर श्वेत

श्वेत हुरहुर मधुर, कटु, तिक्त, कषाय, शीत, रूक्ष, गुरु, कफवातशामक, ग्राही, पित्तकारक, सर, मूत्रजनक, अग्निदीपक, स्वर्य तथा रसायन होती है। यह व्रण, शीतज्वर, भूतबाधा, ग्रहपीड़ा, प्रमेह, कृमि, कुष्ठ, त्वक्-विकार, विष्टम्भ, रुधिरविकार, ज्वर, श्वास, कास, योनिशूल, मूत्रकृच्छ्र, पाण्डु, गुल्म तथा विस्फोट शामक होता है।

इसके पत्र तथा काण्ड से प्राप्त मेथनॉल सत् परखनलीय परीक्षण में कृमिघ्न (Antihelmintic) गुण प्रदर्शित करता है।

औषधीय प्रयोग मात्रा एवं विधि

शिरशूल-हुरहुर पत्र को पीसकर मस्तक पर लगाने से शिरशूल का शमन होता है।

कर्णस्राव-हुरहुर पत्र-स्वरस में मधु, तिल तैल तथा सैंधव लवण मिलाकर 1-2 बूंद कान में डालने से कर्णशूल, कर्णशोथ तथा मध्य कर्णगत विकारों में लाभ होता है।

कर्ण विकार-हुरहुर–पत्र–स्वरस में तुलसी पत्र स्वरस मिलाकर 1-2 बूंद कान में डालने से कर्णविकारों में लाभ होता है।

अतिसार-15-20 मिली हुरहुर क्वाथ का सेवन करने से आंत्रविकार तथा अतिसार में लाभ होता है।

पौधे का क्वाथ बनाकर 15-30 मिली मात्रा में सेवन करने से उदरशूल, अजीर्ण, अग्निमांद्य तथा गुल्म

हुरहुर पीत (Cleome viscosa Linn.) यह 30-90 सेमी तक ऊँचा, दृढ़, तीक्ष्ण एवं पूतिगंधयुक्त, सीधा, चिपचिपा शाकीय पौधा होता है। इसके पुष्प पीत वर्ण के होते हैं।

हुरहुर श्वेत (Cleome gynandra Linn.)

यह 30-90 सेमी ऊँचा, शाखित, ग्रन्थिल-रोमश शाकीय पौधा होता है। इसकी काण्ड एवं शाखाएँ रेखित, श्वेत वर्ण के फैले हुए रोमों से आवृत होती हैं। इसके पुष्प श्वेत वर्ण के होते हैं। इसकी फलियाँ 5-10 सेमी लम्बी, 4.5 मिमी व्यास की चिपचिपी तथा रोमश होती हैं। इसके बीज गहरे भूर

अतिसार-15-20 मिली हुरहुर क्वाथ का सेवन करने से आंत्रविकार तथा अतिसार में लाभ होता है।

पौधे का क्वाथ बनाकर 15-30 मिली मात्रा में सेवन करने से उदरशूल, अजीर्ण, अग्निमांद्य तथा गुल्म में लाभ होता है।

अर्श-1-2 ग्राम बीज चूर्ण का सेवन करने से अर्श में लाभ होता है।

बीज का क्वाथ बनाकर 10-30 मिली मात्रा में पीने से यकृत्प्लीहागत विकारों में लाभ होता है।

संधिशूल-हुरहुर बीज को पीसकर संधियों पर लेप करने से संधिशूल का शमन होता है।

व्रण-हुरहुर पत्र को पीसकर लगाने से व्रण तथा क्षत का रोपण होता है।

त्वक् विकार-पत्र को पीसकर लेप करने से शोथ, व्रण, कण्डू, कुष्ठ तथा अन्य त्वक्-विकारों का शमन होता है।

शोथ-पत्र शाक का सेवन करना शोथ में पथ्य है।

ज्वर-5 मिमी हुरहुर पत्र स्वरस में जल मिलाकर मात्रानुसार सेवन करने से ज्वर में लाभ होता है।

हुरहुर श्वेत के प्रयोग

 

शिरशूल-श्वेत हुरहुर बीज को पीसकर मस्तक पर लेप करने से शिरशूल का शमन होता है।

अर्धावभेदक-श्वेत हुरहुर पत्र स्वरस का नस्य लेने से अर्धावभेदक में लाभ होता है।

नेत्र पीड़ा-श्वेत हुलहुल के पत्रों की पुल्टिस बनाकर नेत्रों पर बांधने से नेत्रवेदना, शोथ तथा लालिमा का शमन होता है।

प्रतिश्याय-श्वेत हुरहुर पत्र-स्वरस को 1-2 बूंद नाक में डालने से प्रतिश्याय में लाभ होता है।

कृमिकर्ण-श्वेत हुरहुर मूल-स्वरस में सोंठ, मरिच तथा पिप्पली मिलाकर छानकर 1-2 बूंद कान में डालने से कृमि कर्ण रोग का शमन होता है।

गलगण्ड-श्वेत हुरहुर एवं लहसुन को समान मात्रा में मिलाकर पीसकर गलगण्ड पर लेप करने से स्राव होकर गलगण्ड का शमन हो जाता है।

दंतशूल-श्वेत हुलहुल के पत्रों को पीसकर दांतों में मलने से दंतशूल का शमन होता है।

प्रवाहिका-श्वेत हुरहुर का क्वाथ बनाकर 15-20 मिली मात्रा में सेवन करने से प्रवाहिका में लाभ होता है।

उदरकृमि-1-4 ग्राम श्वेत हुरहुर बीज चूर्ण में समभाग शर्करा मिलाकर सेवन करने से उदरकृमियों का शमन होता है।

उदरशूल-1-2 बूंद श्वेत हुरहुर बीज तैल को बतासे में डालकर खाने से उदरशूल का शमन होता है।

अर्श-1-2 ग्राम श्वेत हुरहुर बीज चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर सेवन करने से अर्श में लाभ होता है।

बहुमूत्रता-1-2 ग्राम श्वेत हुरहुर बीज में समभाग गुड़ तथा अजवायन मिलाकर सेवन करने से बहुमूत्रता में लाभ होता है।

वातव्याधि-श्वेत हुरहुर के पत्रों का फाण्ट बनाकर 15-20 मिली मात्रा में सेवन करने से वातव्याधियों का शमन होता है।

रोमकूपशोथ-श्वेत हुरहुर पत्र को पीसकर लगाने से व्रण-शोथ में लाभ होता है।

व्रण-श्वेत हुरहुर पत्र तथा बीज को पीसकर व्रण पर लगाने से व्रण का रोपण होता है।

श्वेत हुरहुर के क्वाथ से व्रण को धोने से व्रण का शोधन तथा रोपण हो जाता है।

दाद-श्वेत हुरहुर पत्र स्वरस को लगाने से दद्रु का शमन होता है।

ज्वर-5-10 मिली श्वेत हुरहुर पत्र स्वरस का सेवन करने से ज्वर का शमन होता है।

विषम-ज्वर-10-20 मिली श्वेत हुरहुर पत्र क्वाथ को पिलाने से विषम-ज्वर का शमन होता है।

शीतज्वर-श्वेत हुरहुर पत्र स्वरस में मकोय का स्वरस मिलाकर हाथ पैरों पर मालिश करने से शीतज्वर का शमन होता है।

प्रयोज्याङ्ग : पत्र, बीज तथा पञ्चाङ्ग।

मात्रा : क्वाथ 10-20 मिली। स्वरस 5-10 मिली। चूर्ण 1-2 ग्राम। चिकित्सक के परामर्शानुसार उपयोग कर सकते हैं.

सहर्ष सुचनार्थ नोट्स:-

उपरोक्त आयुर्वेदिक वनौषधी हुर हुर के संबंध में किसी अनुभव कुशल आयुर्वेदिक चिकित्साक एवं वनस्पती विशेषज्ञ की सलाह एवं मार्गदर्शन अनिवार्य है

संकलन एवं प्रस्तुति:-

टेकराम उर्फ टेकचंद शास्त्री

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