– मीडिया की भी भूमिका संदेहास्पद
नागपुर :- निर्लज्जता का चरम क्या और कैसे होता है यह संपूर्ण देश ने कल-परसों देखा. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से संपूर्ण देश ने मुंह में उंगलियां ड़ाली. सब कुछ गलत हुआ ऐसा निरिक्षण सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किया फिर भी सरकार को हटने का आदेश न देना आश्चर्यजनक है. यह तो सीधे-सीधे संविधान का उल्लंघन है. कोर्ट ने निर्णय देने के बाद शिंदे-फडणवीस ने जो कुछ प्रतिक्रिया दी वह तो ‘निर्लज्ज’ इस शब्द को ही शर्म आयेगी ऐसी थी. पूर्व मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे ने इस्तीफा दिया यह उनकी भूल थी. नही तो उन्हें फिर चान्स मिला होता, ऐसा कोर्ट का कहना है. ‘ फिर अन्य निरिक्षण दर्ज करते हुये जो कुछ गैरकानूनी घटनाएं हुई इससे उध्दव ठाकरे के सामने वैसी स्थिति निर्माण हुई थी यह कोर्ट ने ध्यान में क्यों नही रखा? उध्दव ठाकरे की प्रतिक्रिया से तो यही पता चलता है कि, वे इनके जैसे सत्ता के लिये लालायीत नहीं है. तथा कोर्ट की फटकार यानी शिंदे-फडणवीस पर कोर्ट ने फूलों की वर्षा की है, ऐसा उनका मामना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय देने के बाद सोशल मीडिया में तीव्र प्रतिक्रिया उभरी. दरअसल मुद्दा उध्दव ठाकरे को फिर से मुख्यमंत्री पद पर बैठने का था ही नही. सरकार वैध की अवैध, बगावतखोर विधायक पात्र की अपात्र यही असली मुद्दा था. मूल पार्टी पर दावा, व्हिप, राज्यपाल के संविधान बाह्य निर्णय, फडणवीस का पत्र ऐसे अनेक मुद्दों पर कोर्ट ने फैसला दिया है. खास बात यह है कि प्रतोद सुनील प्रभू का ही व्हिप उचित है ऐसा कोर्ट कहता होगा तो अब तक की असे जर कोर्ट सांगत असेल तर आत्तापका जो-जो घटनाक्रम हुआ वह सब गैरकानूनी ही होता है. फिर विधानसभा अध्यक्ष भी गलत हुये है. फिर वे 16 विधायकों की अपात्रता का निर्णय कैसे ले सकते है ?.
कल जो निर्णय आये उसे देखने के बाद शिंदे-फडणवीस सरकार बची, निर्णय आम के पक्ष में, संविधान के अनुसार कोर्ट ने फैसला दिया, ऐसा शिंदे- फडणवीस और उनके चेलेचपाटे कैसे बोल सकते है? साथ ही मीडिया ने भी ब्रेकींग न्युज के नाम पर उध्दव ठाकरे को झटका, उन्होंने इस्तीफा नही देना चाहिये था. इस तरह की खबरे देनी शुरू की. उध्दव ठाकरे सत्ता के लिये भूखे होते तो उन्होंने इस्तीफा दिया ही नही होता. सीधे और कोई भी शर्म न दिखाते हुये सही खबरे देना छोड़ आज की मीडिया पित मिडीया पत्रकारिता करने में ही धन्यता मानती है. लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की यह दयनीय अवस्था देख लोकतंत्र को खतरा निर्माण हुआ है. चौथे स्तंभ का बर्ताव संदिग्ध है.
अब कोर्ट ने तोअपना फैसला दे दिया.
ठाकरे और शिंदे-फडणवीस अपने-अपने तरीके से जीते ऐसा मानेते है. दोनों ने कोर्ट का आभार माना है. परंतु , फैसले में कही भी स्पष्टता नही दिखती. सीधे आदेश दिया ऐसा दिखाई नही देता. विधानसभा अध्यक्ष संविधान के अनुसार और कोर्ट के निरिक्षण के अनुसार निर्णय लेंगे, ऐसा नही लगता. क्योंकि, वर्तमान में राजनीतिकारियों ने अपनी सद्विवेकबुध्दि गिरवी रखी है. किसी भी स्तर पर जाकर सत्ता हथियाना सत्ता हस्तगत यही एक कलमी कार्यक्रम दिखाई देता है. देखा जाये तो झुठे तरीके से जीतने के बजाय सही तरीके से हारना कभी भी अच्छा. क्योंकि, जो सही मार्ग पर चलते है वे कायम शान से रहते है. भारत जैसे खंडप्राय राज्य में सबसे बड़ा न्यायालय यह जना का है. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने संविधान के अनुसार यहां की जनता को मतदान का सबसे बड़ा अधिकार मतदान का दिया है और अब इसी कोर्ट में ठाकरे और शिंदे-फडणवीस का फैसला होनेवाला है. जनता ने दिया फैसला यह अंतिम होकर इस निर्णय को संसार के किसी भी न्यायालय में आह्वान नही दिया जा सकता. इसलिये फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने दर्ज किये निरीक्षण के अनुसार दोनों पार्टियों ने हम ही जीते, ऐसा कहकर जनता को हराया है. इसलिये अब इनका फैसला आगामी चुनाव में जनता ही करेगी. घोडा मैदान समीप है. देखते है आगे क्या होता है ?
– भूमिका गौतम मेश्राम