मूल दस्तावेजों को जमा करने और रोकने स्कूल और विद्यालयों को कोई अधिकार ही नही

– संचालक और प्राचार्यके खिलाफ होगा अपराध दर्ज

नागपुर :- कॉन्वेंट, स्कूल और कॉलेज द्वारा प्रवेश के समय छात्रों के मूल दस्तावेज (ओरिजनल) जमा करने के लिए सख्ती करना और बेलेंस फीस या अन्य कारणों से मूल दस्तावेजों को रोकने के अवैध कृत्य किये जा रहे है .अब ऐसे गैरकानूनी कृत्य करनेवाले संचालक और प्राचार्य के खिलाफ छात्र और अभिभावक सीधे आपराधिक मामला दायर कर सकते हैं , साथ ही उनके स्कूल और संस्था पर प्रशासकीय कार्यवाई होकर मान्यता भी रद्द की जा सकती है , इस संबंधमें कानूनमें और नियमोंमें प्रावधान होनेके साथ ही इस विषय के औरंगाबाद और दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले भी हो चुके है , ऐसी जानकारी सूचना अधिकार कार्यकर्ता महासंघ के राज्य कार्याध्यक्ष शेखऱ कोलते ने देकर छात्र एवं पालको को सजग रहने का आवाहन भी किया.

राज्य में इस समय जहां नर्सरी से नौवीं कक्षा में दाखिले के लिए मारामारी चल रही है, वहीं अब 10वीं और 12वीं के नतीजे भी घोषित कर दिए गए हैं। इससे छात्र और अभिभावक स्कूल में दाखिले के लिए जरूरी दस्तावेज जुटाने के लिए भाग रहे हैं. कुछ छात्रों और अभिभावकों ने शेखर कोलते से शिकायत की है कि वे स्थानीय स्कूलों और स्कूलोंमें जमा किए गए अपने मूल दस्तावेजों को देने से इनकार कर रहे , स्कूल से दस्तावेज गायब हैं, फीस बकाया है ऐसा बहाने बनाकर उन्हें अपने ही स्कूल में प्रवेश लेने के लिए की जा रही है . इस पर कोलते ने संबंधित प्राचार्य से प्रत्यक्ष रूप से मुलाकात करके तथा फोन पर संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि स्कूल में प्रवेश लेते समय मूल दस्तावेज जमा करवाना और बकाया फीस के साथ पूरी फीस का भुगतान किए बिना मूल दस्तावेज नहीं देना है यह हमारा नियम है. जब कोलते ने ऐसे नियमों की प्रति मांगी तो उन्हें प्रति देनेसे साफ मना कर दिया गया. इस पर दिल्ली और औरंगाबाद हाईकोर्ट द्वारा पहले ही फैसला हो चुका है तथा छात्र के मूल दस्तावेज जमा करने और रोकने के संबंध में कोई कानून में कोई प्रावधान नहीं है साथ ही सरकार का कोई आदेश नहीं है. कोलते ने ऐसी चेतावनी देते ही , शिकायत करनेवाले सभी छह छात्रों के मूल दस्तावेज उन सभी स्कूलोंने वापस कर दिए.

छात्र के मूल दस्तावेज को जमा करने व रोककर रखने का कानून में कोई प्रावधान नहीं है और न ही कोई सरकारी आदेश, सर्कुलर आदि है, मूल दस्तावेज छात्र की निजी संपत्ति है और उसका मालिक वही है . निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को बिना किसी दस्तावेज सख्ती के कक्षा 1 से 8 वी तक उनके आयु के अनुसार कक्षाओं में प्रवेश देना अनिवार्य है. साथ ही नर्सरी ,केजी 1, केजी 2 इन्हें फिलहाल शिक्षा विभागकी कोईभी मान्यता न होनेसे इसमें शिक्षाकी सक्ती, किताबें, लेखन सामग्री, अध्ययन, गृहकार्य, परीक्षा, परिणाम आदि नियमों में नहीं हैं और इतकी सख्ती भी नहीं किया जा सकती है. इसमें आंगनबाडी एवं नर्सरी (प्ले स्कूल) स्तर पर ही बच्चों के शारीरिक विकास एवं मनोरंजन पर अधिक बल देना अनिवार्य है। सरकार इसे भविष्य में सरकार के नियंत्रण में लाने का प्रयास कर रही है, ऐसी जानकारी शेखर कोलते ने दी है.

महासंघ के राज्य के कार्याध्यक्ष शेखर कोलते के अनुसार छात्रों के मूल दस्तावेज को जमा करने और रोककर रखने के लिए कानून में कोई प्रावधान या नियम नहीं है, इससे उस छात्र को कोई शैक्षणिक नुकसान होता है तो यही कॉन्वेंट, स्कूल, विद्यालय तथा महाविद्यालय के संचालक और प्राचार्य ही जिमेदार होकर उनके खिलाफ सीधे आपराधिक मामलों सहित प्रशासनिक कार्रवाई भी की जा सकती है , साथ ही दोषी पाए जाने पर उनकी मान्यता स्थायी रूप से निरस्त भी की जा सकती है. इसके लिए छात्रों और अभिभावकों को जागरूक होकर आगे आने की जरूरत है.

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