रमज़ान: आत्मसंयम और अध्यात्म का महीना

– डॉ. जयंत कुमार वि. रामटेके (एक शिक्षाविद् और सामाजिक चिंतक)

डॉ. जयंत कुमार वि. रामटेके, जो सेठ केसरीमल पोरवाल कॉलेज, कामठी में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं, शिक्षा और सामाजिक सुधार के प्रति समर्पित हैं। वे न केवल विद्यार्थियों को शिक्षित करने में संलग्न हैं, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए भी प्रयासरत हैं। उनके शोध और लेखन में सामाजिक न्याय, शिक्षा और ऐतिहासिक हस्तियों के योगदान पर गहन विचार शामिल होते हैं।

रमज़ान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है, जिसे पवित्रतम माना जाता है। इस महीने में दुनिया भर के मुस्लिम समुदाय उपवास रखते हैं, जिसे ‘रोज़ा’ कहा जाता है। यह सिर्फ खाने-पीने से परहेज़ करने तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मसंयम, संयमित आचरण और आध्यात्मिक उन्नति का समय भी है। इस दौरान मुसलमान सुबह ‘सहरी’ से लेकर शाम ‘इफ्तार’ तक उपवास रखते हैं। यह न केवल धार्मिक आस्था को मज़बूत करता है, बल्कि स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।

उपवास की विभिन्न तकनीकें और उनके लाभ

उपवास केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से सिद्ध स्वास्थ्यवर्धक प्रक्रिया भी है। विभिन्न संस्कृतियों में उपवास की अलग-अलग पद्धतियाँ प्रचलित हैं।

1. आंतरायिक उपवास (Intermittent Fasting): इसमें 16:8 विधि सबसे लोकप्रिय है, जहाँ व्यक्ति 16 घंटे उपवास करता है और 8 घंटे के भीतर भोजन करता है। शोध बताते हैं कि यह पद्धति वजन घटाने, इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ाने और मेटाबॉलिज्म सुधारने में सहायक है (Harvard T.H. Chan School of Public Health, 2020)।

2. पानी उपवास (Water Fasting): इसमें व्यक्ति केवल पानी पीता है और किसी भी प्रकार का ठोस भोजन ग्रहण नहीं करता। यह डिटॉक्सिफिकेशन और कोशिकीय पुनर्निर्माण (Autophagy) को प्रोत्साहित करता है (Yoshinori Ohsumi, Nobel Prize in Medicine, 2016)।

3. ड्राई फास्टिंग (Dry Fasting): इसमें व्यक्ति पानी और भोजन दोनों से परहेज़ करता है। रमज़ान के रोज़े इसी श्रेणी में आते हैं। यह शरीर को पुनर्जीवित करने और सूजन को कम करने में सहायक होता है (National Institutes of Health, 2019)।

4. 5:2 उपवास विधि: इसमें सप्ताह के 5 दिन सामान्य आहार लिया जाता है और 2 दिन 500-600 कैलोरी तक सीमित किया जाता है। यह हृदय स्वास्थ्य में सुधार और जीवन प्रत्याशा बढ़ाने में मदद कर सकता है (The New England Journal of Medicine, 2019)।

5. वैकल्पिक दिन उपवास (Alternate-Day Fasting): इसमें व्यक्ति एक दिन सामान्य भोजन करता है और अगले दिन उपवास रखता है। यह वजन घटाने और रक्त शर्करा नियंत्रण में प्रभावी हो सकता है (JAMA Internal Medicine, 2017)।

उपवास का आध्यात्मिक और सामाजिक प्रभाव

रमज़ान और अन्य प्रकार के उपवास न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं, बल्कि मानसिक एवं आध्यात्मिक शुद्धि में भी सहायक होते हैं। यह आत्मसंयम, करुणा और अनुशासन को विकसित करने का माध्यम है। रोज़े के माध्यम से समाज में समानता और सहानुभूति की भावना भी उत्पन्न होती है, क्योंकि यह हमें भूख और प्यास का अनुभव कराकर जरूरतमंदों की पीड़ा को समझने में मदद करता है।

निष्कर्ष

उपवास, चाहे वह धार्मिक हो या वैज्ञानिक, मानव शरीर और मन दोनों के लिए अत्यंत लाभकारी है। रमज़ान के रोज़े विशेष रूप से आत्मसंयम, करुणा और अनुशासन को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। डॉ. जयंत कुमार वि. रामटेके का मानना है कि ऐसे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पहलुओं पर शोध और जागरूकता बढ़ाने से समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।

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