प्रवासी मजदूर की दास्ताँ

 घर पहुंचने की जद्दो-जहद मे किया 650 किलोमीटर का पैदल सफर।
गडचिरोली – कहते है गरीबी व मुफलसी इंसान से क्या नही कराता है। जिस उम्र मे इंसान को हाथों मे खिताबे व मौज मस्ती करनी होती है। उस उम्र मे एक इंसान को लाचारी व मजबूरी ने प्रवासी मजदूर बनाकर खडा कर दिया। इसके लिये हालतों को जिम्मेदार ठहराये या फिर इससे उसकी तकदीर माना जाए। यह विचारणीय सवाल है। कुछ ऐसा हि दास्ताँ है असाम के एक युवक की। जिससे गरीबी व मुफलिसी ने प्रवासी मजदूर बनाकर रख दिया। उस पर ठगी का शिकार होना। जिसने उसे अपने घर पहुँचने के जद्दो-जहद मे करवायी करीब 650 किलोमीटर का पैदल सफर। फिर भी हासिल ना हुआ मकसद।
आज हम असम के एक युवक की दास्ताँ बयां कर रहे है। जो पढ़ने लिखने के उम्र मे  गरीबी व लाचारी के चलते प्रवासी मजदूर बन कर अपने घर असाम से दलाल के साथ निकल कर पहुंचा तेलंगाना के एक शहर मे। जहा करीब 9 माह तक मजदूरी करने पर फूटी कौडी भी हासिल नही हुआ। जब उसने अपनी मेहनताना मांगा तो  काम दिया वाले ने काम से निकाल दिया। ऐसे मे युवक वहां से खाली हाथों  बिना पैसे के हि पैदल अपने घर के लिये निकल पड़ा। युवक पैदल चलते चलते करीब 650 किलोमीटर पैदल चलकर ओडिसा के कोरापुट पहुंचा। जहा उसने राह चलते एक स्थान पर रुक कर खाना मांगा। उसकी भाषा को देखते हुए वहां मौजुद लोगों ने उससे उसकी पता के बारे मे  पूछने लगे। जबकी युवक को असाम की भाषा को छोडकर दुसरी भाषा आता नही था। इससे ध्यान मे रखते हुए कोरापुट के लोगों ने वहां के एक समाजिक कार्यकर्त्ता को इसकी जानकारी दी। उस सामाजिक कार्यकर्ता ने कोरापुट के नजदीक स्थित लक्ष्मीपुर उस युवक को लेकर पहुंचा। जहां पर पहले से हि असाम के कुछ लोग रेल्वे टनेल के कार्य मे मजदूरी कर रहे थे।समाजिक कार्यकर्ता ने युवक को उन मजदूरों के सामने लाकर खडा कर दिया।
मजदूरों ने युवक से पूछताछ मे पाया की उस युवक का नाम अजय बोदुले है। वह असाम के नगम जिले का निवासी है।  ठेकेदार के ठगी का शिकार होने के बाद बिना पगार लिये हि असाम के गुवाहटी के लिये तीन माह पहले हि निकल आया है। मगर स्थानीय भाषा के जानकारी के अभाव मे वह रास्ता भटक कर कोरापुट के लक्ष्मीपुर करीब 650 किलोमीटर  पैदल सफर कर हैदराबाद से भद्राचलम होते हुए कोरापुट के लक्ष्मीपुर पहुंचा है। युवक की स्थिति को देखते रेल्वे टनेल मे काम कर रहे असाम के मजदूरों ने युवक को आपस मे चंदा कर उसके घर असाम भेजना चाहा मगर अजय शारिरीक व मानसिक रुप से कमजोर नजर आ रहा था। वह डरा सहमा नज्र आ रहा था। इसको लेकर उन मजदूरों ने अजय को अपने साथ मे रखने का निर्णय लिया है।उन मजदूरों ने अपने साथ अजय को असाम ले जाने का वादा किया। युवक अजय अभी उन मजदूरों के साथ मे है।
अजय की कहानी ने अनेक सवालों को जन्म दिया है।  किस तरह से प्रवासी मजदूर ठगी के शिकार हो रहे है। 9 माह के मजदूरी के बाद जब फूटी कौड़ी हाथ ना आया तो अजय पर क्या बीती होगी इसकी हम कल्पना भी नही कर सकते। अजय की कहानी केंद्र व राज्य के सरकारों द्वारा विशेषकर ग्रामींण क्षेत्रों मे रोजगार के दिशा मे की जाने वाले दांवों की जमीनी सच्चाइ बयाँ कर रही है। आज के मशीनरी व आधुनिकरण के युग मे कैसे ग्रमीण क्षेत्र मे लोग काम के तलाश मे प्रवासी मजदूर बन रहे है। शायद देश के अन्य राज्यों मे भी ऐसे अजय होंगे जो इस तरह की परिस्थितियों का सामना कर चुके होंगे।
सतीश कुमार गडचिरोली
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