गोंदिया :- महाराष्ट्र राज्य के विशेषतः विहंगम वनांचल वाले विदर्भ संभाग में नक्सल प्रभावित क्षेत्र माना जा रहा है। हालकि महाराष्ट्र शासन द्धारा नक्सली आंदोलन को मान्यता नहीं मिली है, लेकिन माओवादियों ने पिछले दो दशकों में पूर्वी महाराष्ट्र के अविकसित आदिवासी क्षेत्र में एक गुरिल्ला क्षेत्र बना लिया है। 1980 के दशक के दौरान नक्सली पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश से ‘राज्य दमन के खिलाफ मुक्ति’ के नारे के साथ दाखिल हुए। वे नियमित रूप से उनके गाँवों का दौरा करके स्थानीय गरीबी से पीड़ित आदिवासियों के साथ तालमेल स्थापित करने में सफल रहे। जब नक्सली पूर्वी महाराष्ट्र में पैठ बना रहे थे, तब सरकार उन्हें आंध्र प्रदेश से ‘स्पिल ओवर इफेक्ट’ करार दे रही थी। आज, महाराष्ट्र में पंद्रह दलम काम कर रहे हैं, जिनमें प्लाटून दलम , टीपागढ़ दलम और खोबरामेंधा दलम शामिल हैं।सबसे विकारी हैं; एलएमजी और अन्य अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। भाकपा (माओवादी) के पास लगभग 250 पूर्णकालिक सशस्त्र कैडर हैं और 3,000 स्थानीय समर्थकों का एक मजबूत दल है।
जिला गडचिरोली महाराष्ट्र में लाल गढ़ बन गया है, जबकि चंद्रपुर, गोंदिया, यवतमाल, भंडारा और नांदेड़ जिलों को “नक्सल प्रवण क्षेत्र” घोषित किया गया है। ये सभी जिले आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से सटे हुए हैं। इस अनुकूल भौगोलिक स्थिति के अलावा, इन जिलों का आर्थिक पिछड़ापन और लहरदार भूभाग वाम उग्रवाद के लिए उर्वर आधार हैं।
टीम गृह मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट (2004-05) में 2004 के दौरान महाराष्ट्र में नक्सली हिंसा में 15 प्रतिशत की खतरनाक वृद्धि दर्ज की गई है। साल भर नक्सलियों ने सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाया है, पंचायती राज संस्थाओं पर उनका लगातार हमला आश्चर्य की बात है। इससे पता चलता है कि वे लोगों को राजनीतिक शक्ति का स्वाद नहीं चखना चाहते क्योंकि वे आशंकित हैं कि यह सरकार और लोगों के बीच की खाई को पाट सकता है। 2005 में आंध्र की विफलता का प्रभाव महाराष्ट्र में पड़ा, जो विदर्भ में यवतमाल और वर्धा और मराठवाड़ा के औरंगाबाद जैसे पूर्व के नक्सल मुक्त जिलों से नक्सलियों और उनके हमदर्दों की गिरफ्तारी से स्पष्ट है। नागपुर में एक आग्नेयास्त्र निर्माण इकाई का पता चला था।
पुलिस और नक्सलियों के बीच हुई गोलीबारी में आदिवासी फंस गए हैं । गढ़चिरौली और उसके आसपास के पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं कि मारे गए लोगों में से 80 प्रतिशत से अधिक आदिवासी हैं। गढ़चिरौली महाराष्ट्र के सबसे कम विकसित जिलों में से एक है जहां सबसे गरीब लोग अत्यधिक हिंसा और घोर गरीबी के बीच रहते हैं। 2005 में विदर्भ क्षेत्र में किसानों की आत्महत्याओं की संख्या सबसे अधिक देखी गई है। हालाँकि ये मौतें नक्सलवाद की समस्या से संबंधित नहीं हैं, लेकिन नक्सलियों ने इस स्थिति का इस्तेमाल असंतुष्ट किसानों को बचाने के लिए राज्य सरकार की विफलता की आलोचना करके किया है। किसानों की।
राज्य सरकार ने आत्मसमर्पण नीति तैयार की है जो आत्मसमर्पण करने वालों को नकद लाभ प्रदान करती है और उन्हें स्वरोजगार और शिक्षा प्रदान करती है। यह नीति तभी परिणाम दे सकती है जब लोग सरकार के प्रति आश्वस्त हों। इससे पहले, गाँवबंदी कार्यक्रम (नक्सलियों को गाँव में प्रवेश करने से रोकना) के तहत , सरकार ने गाँवबंदी गाँवों के लिए 2 लाख रुपये नकद पुरस्कार घोषित किया था; हालाँकि, 232 में से केवल 112 गाँवबंदीइस इनाम का आधा हिस्सा गांवों को दे दिया गया है। इससे जनता के बीच सरकार की विश्वसनीयता कम हुई है। कुछ समय पहले सरकार ने नक्सलियों का मुकाबला करने के लिए स्थानीय आदिवासी युवाओं को पुलिस में भर्ती करने की भी घोषणा की थी. गढ़चिरौली में एक के बाद एक आने वाली सरकारों के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए कई लोग मानते हैं कि यह केवल एक प्रस्ताव बनकर रह जाएगा।
दशकों से नक्सलवाद प्रासंगिक बना हुआ है क्योंकि यह सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक गलतियों की प्रतिक्रिया का प्रतीक है। लेकिन नक्सली उपस्थिति ने विकास को अस्तित्वहीन बना दिया है। यह विडम्बना है कि क्रांति के नाम पर नक्सली पैसे तो बटोर रहे हैं, लेकिन आदिवासी और ग्रामीण विकास के लिए सरकारी धन खर्च नहीं होता या गलत हाथों में चला जाता है। सरकार को यह महसूस करना चाहिए कि यह एक राजनीतिक समस्या है और इसे राजनीतिक रूप से हल करने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र के लोगों ने कभी भी राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं किया है। सरकार गको अपनी आबादी के सीमांत वर्गों को सशक्त बनाने के तरीके खोजने चाहिए क्योंकि यह समान आर्थिक विकास प्रदान करेगा जो “जनता की सरकार के लिए जनयुद्ध” के नक्सली नारे से निपटने का सबसे अच्छा तरीका माना जा रहा है।
नक्सलवाद को बढावा की मुख्य वजह है गरीबी और भुखमरी
वनांचल परिक्षेत्रों मे नक्सलवाद को बढावा मिलने की मुख्य वजह है वहां पर गरीबीबेरोजगारी और भुखमरी बताया जा रहा है। ठेकेदार मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी से वंचित रखता है? इतनाही नहीं मजदूरों की मजदूरी से कटौती करके लाखों रुपये राजनेताओं को रिश्वतखोरी भेंट दी जाती है।परिणामस्वरूप मजदूरों की मेहनत पसीने की कमाई के भरोसे नेता अपनी सस्ती लोकप्रियता के लिए हजारों कटआऊट और बैनर लगाते है। राजनेता पाप-ताप को डरता नहीं है?
महाराष्ट्र राज्य में सबसे अधिक गरीबी विदर्भ के भंडारा, गोंदिया, चंद्रपुर और गड़चिरोली जिले के ग्रामीण इलाकों में पाई गई है। यह खुलासा राज्य के मानव विकास रिपोर्ट में हुआ है।तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मानव विकास (2012)रिपोर्ट का लोकार्पण किया था। रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय तुलना में राज्य की मूल आय 46 फीसदी अधिक है। मानव विकास, आर्थिक, आय, शिक्षा, स्वास्थ्य व पोषण, पानी, स्वच्छता और गृहनिर्माण इत्यादि पहलुओं के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई है।
2011 में राज्य का मानव विकास निर्देशांक 0.666 था। अब बढ़कर 0.752 फीसदी हो गया है। राज्य के सभी जिलों में मानव निर्देशांक बढऩे का दावा रिपोर्ट में किया गया है। 2001 से 2011 के बीच साक्षारता दर, स्कूलों की संख्या, अर्भक मृत्युदर व आय चारों निर्देशांकों में सभी जिलों में सुधार हुआ है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में महाराष्ट्र देश के अन्य राज्यों की तुलना में दूसरे पायदान पर है। राज्य के ग्रामीण अंचलों के पूर्वी क्षेत्र के चंद्रपुर, भंडारा, गोंदिया और गड़चिरोली में दरिद्रता का प्रमाण सर्वाधिक 47.07 प्रतिशत है। पुणे में दरिद्रता का प्रमाण सबसे कम 9.54 फीसदी है।
साक्षरता राष्ट्रीय स्तर से 8 फीसदी अधिक
2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में साक्षरता दर 82.9 प्रतिशत है जो कि राष्ट्रीय साक्षरता दर से 8 फीसदी अधिक है। सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत राज्य शिक्षा खर्च में 2006-07 से 2009-10 के बीच 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2011-12 में अर्भक मृत्युदर में 20 प्रतिशत की कमी आई है। देश में कुल पात्र व अपात्र झोपड़पट्टियों में से 35 प्रतिशत झोपड़पट्टी महाराष्ट्र में है। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 19.6 प्रतिशत परिवारों को आधे किलोमीटर या उससे अधिक दूरी से पानी लाना होता है।
शौचालययुक्त परिवारों की संख्या में इजाफा: 2001-11 के बीच शौचालययुक्त घर होनेवाले परिवारों की संख्या में 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 2011 जनगणना के अनुसार राज्य के ग्रामीण इलाकों में 38 फीसदी और शहरो में 75 प्रतिशत घरों में शौचालय है। अनुसूचित जाति व जनजाति के परिवारों में 6 से 10 फीसदी सुधार हुआ.