लड्डू के विवाद से निकला लड्डू

– क्यों डांट पड़ी चंद्राबाबू नायडू को?, सुको ने सुनाई खरी खोटी

नई दिल्ली :- चुनावी मौसम में मुद्दों को भडक़ाने के लिए राजनीति खड़ी की गई. जिसके घी से आग लगाने की कोशिश की गई. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के उस लड्डू को सिर्फ घिनौनी राजनीति से पर्दा हटा दिया है. लड्डू में जानवरों की चर्बी होने का बयान देने वाले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री को ऐसी खरी खोटी सुनाई है कि इसके बाद उन्हें एहसास हो जाना चाहिए जब आप संवैधानिक पद पर हैं तो हम उम्मीद करते हैं कि देवताओं को राजनीति में न घसीटें. जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि रिपोर्ट आती है जुलाई में और 18 सितंबर को आप बयान देते है. सुको ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पर्दाफाश किया है. कोर्ट ने यह भी कह दिया कि जिस मामले में जांच चल रही थी क्या मुख्यमंत्री को सार्वजनिक बयान देना चाहिए था. कोर्ट का एक-एक शब्द चंद्राबाबू नायडू के बयान की घज्जियां उडा रहा है. कोर्ट ने पूछा कि जब आपने जांच के आदेश दिए थे तब पब्लिक में बयान देने की क्या जरूरत थी या आस्था रखने वाले लाखों लोगों की भावनाओं का मामला है. कोर्ट ने मौखिक रूप से यह भी माना की प्रथम दृष्टया इस रिपोर्ट से यह पता चलता है कि उन सैंपल का टेस्ट जिन्हें खारिज कर दिया गया. लड्डू बना ही नहीं, ऐसा कोर्ट ने प्रथम दृष्टया माना. आपको यह बात समझ में आ गई होगी कि चंद्रबाबू नायडू को सुप्रीम कोर्ट ने जो सुनाया है इसके बाद उन्हें कम से कम यह बयान तो देना ही चाहिए कि उनके जानवरों की चर्बी वाले बयान के बाद जो राजनीति चली उसे रोकने की कोशिश उन्होंने क्यों नहीं की?. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के अनुसार भी जांच जरूरी थी 25 सितंबर की फिर की गई जांच के लिए कमेटी का गठन किया गया. मुख्यमंत्री ने 18 सितंबर को बयान दे दिया इसलिए यह कहा जा सकता है की और कमेटी के गठन से पहले ही बयान दे दिया. कोर्ट ने कहा हमारा प्रथम दृष्टया मानना है कि जब जांच चल रही थी तब उच्च संवैधानिक व्यक्ति द्वारा ऐसा बयान देना उचित नहीं था. जिससे करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत हो सकती है. यह उचित होगा की सॉलिसिटर जनरल हमारी इस बात पर मदद करें की सरकार द्वारा गठित कमेटी ने जांच की जानी चाहिए. कितनी बड़ी बात है आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा गठित एसआईटी पर ही सरकार के सॉलिसिटर जनरल से पूछा है की राज्य द्वारा गठित एसआईटी कोई स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच की जानी चाहिए यह कितनी बड़ी बात है आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा गठित एसआईटी पर ही सुप्रीम कोर्ट को एक तरफ से भरोसा नहीं है. यहां तक बात आ गई लड्डू में जानवरों की चर्बी होने के बहाने का यह खेल पहले ही पकड़ा जा चुका था. सुप्रीम कोर्ट ने उसे ध्यान मेें ला दिया. मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की राजनीति ऐसी नहीं मानी जाती है वही बेहतर बता सकते हैं कि उन्होंने सियासत का यह नया खेल किसके फायदे के लिए किया. सितंबर को जगनमोहन रेड्डी ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख दिया कि आप चंद्रबाबू नायडू को फटकार लगाइए. प्रधानमंत्री मोदी फटकार नहीं लगा सके क्या कोर्ट ने यह फटकार की कसर पूरी कर दी. पत्रकारों ने इस राजनीति का पर्दाफाश किया था की कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं बस मुख्यमंत्री का एक आधा अधूरा सांकेतिक बयान और उसके बाद लड्डू में चर्बी को लेकर सियासी ड्रामा देश भर में शुरू हो जाता है. आप सभी की भावनाओं से खेला जाता है. इन खबरों के जरिए आपके भीतर एंटी मुस्लिम नफरत भरी जाने लगी ताकि आप नागरिकों की भीड़ में बढ़ाते जाएं और इस राजनीति के कार्य और जस्टिस विश्वनाथन की टिप्पणियां पर्दाफाश कर रही आखिर कब तक यह चलेगा. कभी तो यह सवाल खुद इसी में लगा हुआ है वह जनता की समस्या के बीच नहीं किसी न किसी मंदिर का रहा है. कहीं कोईं आरती कर रहा है, कोई धर्म ज्ञान दे रहा है, तो कहीं दूसरे धर्म वालों को दरकिनार लगा रहा है. जनता का काम न करने और जनता के सवालों का जवाब न देने का एक बहाना बन गया है. खेल में बने रखे ऐसे मुद्दे खोजे जाते हैं और जनता के बीच फैलाए जाते हैं की अपनी व्यवस्था होती है. काफी कड़ाई से निगरानी रखी जाती है. जब पटना के महावीर मंदिर में इतनी निगरानी में लड्डू बन रहे हैं और तिरुपति के मंदिर में इस्तेमाल चर्बी मिलने वाला कौन है? उसकी नियत क्या है. यह सब हेडलाइन चमकाई जाने लगी की. लड्डू में चर्बी है. जानवरों की चर्बी का नाम लिया जाने लगा कि तिरुपति मंदिर जाने वाले आस्था वालों को यह राजनीति समझ में आ गई. लड्डुओं की बिक्री पर कोई असर नहीं पड़ा. तिरुपति से खबर आई कि विवाद के दौरान के चार दिनों के भीतर 14 लाख लड्डू बिक गए. जांच रिपोर्ट में अभी ठोस रूप से कुछ भी नहीं कहा, लेकिन राजनीति में ठोस रूप से दावा करना शुरू कर दिया. पूरे देश में यह बात झोंकने की कोशिश की गई है. तिरुमला तिरुपति देवस्थानम एनबीडी की रिपोर्ट में मिलावट पाई गई. लेकिन मिलावट बताइए यही पता नहीं की मिलावट किस चीज की थी. लेकिन देखिए एक अखबार की हेडलाइन क्या कहती है चर्बी की पुष्टि 2० सितंबर के जागरण की हेडलाइन में तिरुपति के लड्डू में पशुओं की चरबी सितंबर को भी पहले पन्ने पर इसी मामले को लेकर हेडलाइन छपती है. स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा का बयान छपता है कि तिरुपति लडडू की जांच करेगा एफएसएसएआई तो उचित कार्रवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा जब रिपोर्ट में पूछताछ ही नहीं हुई और घी का इस्तेमाल भी नहीं हुआ तब फिर मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक बयान क्यों दिया. केवल मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने नहीं बल्कि 19 सितंबर को ही मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री गिरिराज सिंह ट्वीट करते हैं लिखते हैं जांच रिपोर्ट से पूछताछ हुई. बीफ चर्बी और मछली के तेल का इस्तेमाल किया गया जब हिंदू विरोधी होती है तो वह सबसे पहले आस्था पर हमला करती है. सिंह हिंदू विरोधी सरकार का नारा लगा रहे हैं और लिख देते हैं की जांच में पुष्टि हुई है कि लड्डू में बी चर्बी थी. जबकि आज तक इसकी प्लान को लेकर किसी न किसी बहाने नफरत की राजनीति पैदा की जा रही है. आज आपने देख लिया इस राजनीति की बुनियाद. किसी नेे कहा कि कुछ प्रेस रिपोर्ट में यह भी खबर है कि तिरुपति तिरुमला देवस्थानम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने बयान दिया किस आधार पर उन्होंने ऐसा बयान दिया है. लूथरा से कहा कि मिस्टर लूथरा आप अपने सभी बयानबाजी नहीं चलेगी. कोर्ट की यह बातें गिरिराज सिंह, चंद्रबाबू नायडू, पवन और सिद्धार्थ लूथरा के एक क्लाइंट भी नहीं बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी, वाईएसआरसीपी के राज्यसभा सांसद रेड्डी भी ह. ै सुबह रेड्डी जगन रेड्डी सरकार में मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष थे इसके अलावा डॉ. विक्रम संवत और दुष्यंत श्रीधर के नाम भी शामिल है. सुब्रमण्यम स्वामी की तरफ से वरिष्ठ वकील राजशेखर राव ने भी कहा कि मुख्यमंत्री ने बिना किसी ठोस आधार के बयान दिया. यह भी अपने आप में गंभीर मुद्दा है. उन्होंने मांग थी कि इस मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप होना चाहिए तो क्या चंद्रबाबू नायडू माफ़ी मांगेंगे, क्या गिरिराज सिंह ने माफी मांगी. एक मुख्यमंत्री, एक केंद्रीय मंत्री किस आधार पर मुख्यमंत्री ने बयान दिया और किस आधार पर केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट कर दिया की जांच में पूछताछ हुई. जबकि तिरुपति मंदिर की तरफ से पेश हो रहे वकील सिद्धार्थ लूथरा कहते हैं एक ही आपूर्तिकर्ता यानी सप्लायर जून के महीने में और जुलाई की 4 तारीख तक जांच के लिए नहीं भेजा गया. 6 जुलाई और 12 जुलाई को दो-दो टैंकरों में जो भी आया उसे एचडीबी को भेजा गया. जानकारी दी गई है कि सभी में घी मिलावटी पाया गया. यह भी जानकारी दी गई है कि जून और 4 जुलाई तक सप्लाई किए गए सैंपल के घी का इस्तेमाल में ही आ गया था ऐसा मंदिर के वकील कह रहे हैं. अब केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह बयान देते हैं कि जानवर की चर्बी की पुष्टि हो गई. तभी कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने शुरुआत में ही कह दिया था कि, डीडीयू को लेकर किये जा रहे दावे सही है तो पूरी जांच होनी चाहिए और दोषियों को सख्त सजा देनी चाहिए. लेकिन अगर दावे किए जा रहे हैं तो करोड़ों श्रद्धालु ऐसा करने वालों को माफ नहीं करेंगे. वही हुआ जिसका अंदेशा था शुरू से शक था कि जिस तरह से इस मसले को गोदी मीडिया उठा रहा है हिंदी अखबार और न्यूज चैनल हेडलाइन बना रहे हैं. नेताओं के बयान आ रहे हैं ताकि चुनाव में बेरोजगारी से लेकर जीएसटी की मार से रो रहे व्यापारियों के मुद्दे पर बात ना हो सके . मिलावट में एनिमल फैट का नाम आते ही हेड लाइनों ने अपना काम शुरू कर दिया, चर्बी को लेकर संकेत देना शुरू कर दिया. क्या-क्या नहीं जोड़ा गया, क्या-क्या नहीं कहा मुख्यमंत्री ने. पवन कल्याण को एक नए हिंदू नेता के उदय के रूप में दिखाया जाने लगा की राज्य के उपमुख्यमंत्री के पवन कल्याण भी प्रायश्चित करने मंदिर पहुंच गए और खबरें चलने लगी. मंदिर ने अपनी तरफ से बीफ चर्बी की बात कभी नही की. सामग्री बने हिंदू आस्था के नाम पर ऐसे मुद्दों के सहारे जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है. चर्बी के आधार पर उत्साह बढ़ता जा रहा है ताकि बच्चे हिंसा कर बैठे और अपराधी बन जाए. लेकिन मंदिर की तरफ से फौरन हाइट सोयाबीन कम करनाल फैट या बीफ डायलॉग कुछ भी हो सकता है. मंदिर में कभी नहीं कहीं नहीं लिखा कि घी ठीक हो सकता है. मगर हिंदी के अखबार किसी न किसी बहाने से चैनल भी लिखने लग गए, इशारा करने लग गए इस बात की पुष्टि हो चुकी है. मंदिर प्रशासन ने कहा है कि सैंपल में वनस्पति तेल की मिलावट पाई गई. सुप्रीम कोर्ट में लड्डू को लेकर कई याचिकाएं दायर हुई है. जिनमें मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इस मामले में केंद्रीय जांच की जरूरत है. तो केंद्र सरकार से निर्देश लीजिए. लेकिन कोर्ट की टिप्पणियों ने इस मसले को लेकर चल रही घिनौनी राजनीति को सबके सामने लाने से कोर्ट ने अपने फैसले में कहा यह बात पूरी दुनिया के करोड़ों लोगों की आस्था और भावनाओं से जुड़ी है. कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल नहीं हुआ. उसके सैंपल की जांच हुई यदि आपने स्वयं जांच का आदेश दिया है तो प्रेस में जाने की क्या आवश्यकता थी. चर्बी का विवाद सच्चाई से कोसों दूर है. यह जल्दबाजी में खड़ा किया गया लेकिन राजनीति भडक़ाने के लिए बीफ का चयन कर लिया गया. कम से कम उन प्रवक्ताओं को माफी मांगनी चाहिए जो भी लड्डू के बहाने धर्म के रक्षक बने फिर रहे थे और जब उनसे रोजगार पर सवाल पूछा जाता है. खराब सडक़ों को लेकर सवाल पूछा जाता है. तब वेे जवाब देते नहीं. एक बार आप फिर से उन हेडलाइन को जाकर देखिएगा जो लड्डू में बीफ होने की बात कह रहे थे. इन सब पर बात नहीं हो रही हर समय धर्म का मुद्दा लाकर आपको भडक़ाया जा रहा है. मिलावट लड्डू में नहीं इन नेताओं की नियत में है जो किसी भी समय आपको नफरत की आग में झोंकने के लिए तैयार रहते हैं. इनसे बचकर रहिए, यह धर्म नहीं बचा रहे धर्म का नाम लेकर अपनी कुर्सी बचा रहे हैं.

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