विश्वसनीयता की कसौटी पर कांग्रेस

भारत की राजनीति में कांग्रेस पार्टी एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक, यह पार्टी सत्ता के शिखर तक भी पहुँची और संघर्षों से भी गुजरी। लेकिन वर्तमान समय में कांग्रेस की विश्वसनीयता को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि पूरे देश पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस अब कुछ राज्यों में सिमट कर रह गई है। जिसमें कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, केरल प्रमुख है। वहीं भाजपा 17 राज्यों में सरकार में है वहीं 6 राज्यों में उनकें सहयोगी दलों की सरकार है। ऐसे में कांग्रेस की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा है। कांग्रेस जनता के भरोसे पर खरी उतर नहीं पा रही है, या उसका जनाधार लगातार कमजोर हो रहा है?

कांग्रेस की ऐतिहासिक विश्वसनीयता

कांग्रेस पार्टी की नींव 1885 में रखी गई थी और इसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन से भारत को स्वतंत्र कराना था। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और अन्य नेताओं के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारत को आजादी दिलाई। आजादी के बाद, यह पार्टी दशकों तक सत्ता में रही और देश के औद्योगिक, आर्थिक और सामाजिक विकास में योगदान दिया।

1950 और 1980 के दशक में कांग्रेस की विश्वसनीयता काफी मजबूत थी। जनता को इस पार्टी पर भरोसा था क्योंकि यह विकास और स्थिरता का प्रतीक मानी जाती थी। लेकिन समय के साथ इसमें गिरावट आने लगी।

कांग्रेस की विश्वसनीयता पर संदेह क्यों?

पिछले कुछ दशकों में कांग्रेस में प्रभावी नेतृत्व की कमी रही है। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के बाद कांग्रेस में करिश्माई नेतृत्व नहीं दिखा। राहुल गांधी को पार्टी का चेहरा बनाया गया, लेकिन वे जनता और कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतने में पूरी तरह सफल नहीं हो सके। इसका उदाहरण वर्तमान में भी देखने को मिला हरियाणा, महाराष्ट्र व दिल्ली के चुनाव में।

कांग्रेस के भीतर गुटबाजी और अंदरूनी कलह बढ़ती जा रही है। कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, जिससे इसकी विश्वसनीयता को नुकसान हुआ है।

कांग्रेस की नीतियाँ अक्सर स्पष्ट नहीं होतीं। पार्टी कभी धर्मनिरपेक्षता का पक्ष लेती है, तो कभी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह अपनाने की कोशिश करती है। इस दुविधा के कारण जनता में इसकी विश्वसनीयता कम हुई है।

कांग्रेस कल में हुए 2जी घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला और कोयला घोटाले जैसे भ्रष्टाचार के मामलों ने कांग्रेस की छवि को भारी नुकसान पहुँचाया। विपक्ष ने इसे ‘भ्रष्टाचार की जननी’ करार दिया, जिससे जनता का भरोसा कमजोर हुआ।

लोकसभा चुनावों में गिरती लोकप्रियता – क्षेत्रीय दलों के साथ चुनाव लड़ कर क्षेत्रीय दलों की बढ़ती महत्ता भी कांग्रेस को जनता से दूर कर रही है। 2014 और 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस की भारी हार ने यह साबित किया कि जनता का भरोसा लगातार कम हो रहा है। पार्टी ने 2014 में 44 सीटें और 2019 में 52 सीटें जीतीं, जो उसके ऐतिहासिक प्रदर्शन की तुलना में बेहद कम था। 2024 में भी सभी क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर चुनाव लड़ा तब जाकर 99 तक सीटे मिल पाई।

दिल्ली में 2025 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। पार्टी पिछले दो विधानसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत सकी है, जिससे उसकी राजनीतिक उपस्थिति लगभग नगण्य हो गई है।

2024 में महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और उसके गठबंधन ‘महा विकास आघाड़ी’ को बड़ा झटका लगा, जहां वे कुल मिलाकर लगभग 50 सीटें ही जीत सके, जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाली ‘महायुति’ ने 230 से अधिक सीटें हासिल कीं।

अब बिहार में आगामी 2025 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती है। पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के लिए उसे गठबंधन सहयोगियों के साथ मिलकर रणनीति बनानी होगी।

क्या कांग्रेस अपनी विश्वसनीयता फिर से स्थापित कर सकती है?

कांग्रेस के पास अब भी अवसर हैं, लेकिन इसके लिए पार्टी को बड़े बदलाव करने होंगे।

*मजबूत नेतृत्व* – कांग्रेस को ऐसा नेतृत्व चाहिए जो न केवल पार्टी को एकजुट रखे, बल्कि जनता का भरोसा भी जीत सके।

*आधुनिक राजनीति के अनुरूप बदलाव* – भाजपा की आक्रामक रणनीति और सोशल मीडिया के प्रभावी इस्तेमाल के मुकाबले कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी होगी।

*युवा और जमीनी नेताओं को अवसर* – पार्टी को सिर्फ वंशवाद पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि जमीनी स्तर के नेताओं को भी उभरने का मौका देना चाहिए।

*स्पष्ट नीतियाँ और विचारधारा* – कांग्रेस को अपनी विचारधारा को स्पष्ट करना होगा और जनता को भरोसा दिलाना होगा कि वह एक स्थिर और मजबूत विकल्प है। कांग्रेस की नीतियों से जनता भ्रमित हो रहीं हैं। सनातन विचारधारा पर कांग्रेस की नीतियां सनातन विरोधी की छवि बन रही है। उनके सहयोगी दलों के भी बयानों पर कांग्रेस की चुप्पी लोगो का भरोसा खोबराही है।

कांग्रेस पार्टी की विश्वसनीयता आज सवालों के घेरे में है। इसके पीछे कमजोर नेतृत्व, गुटबाजी, नीतिगत अस्पष्टता और भ्रष्टाचार जैसे कारण हैं। हालांकि, यदि कांग्रेस अपनी रणनीति में बदलाव करती है, जनता से सीधा संवाद स्थापित करती है और एक ठोस नीतिगत ढांचा अपनाती है, तो वह फिर से विश्वसनीयता हासिल कर सकती है। लेकिन क्या कांग्रेस खुद को बदलने के लिए तैयार है? यह आने वाले चुनावों और पार्टी की कार्यशैली पर निर्भर करेगा।

– प्रवीण डबली, वरिष्ठ पत्रकार

Contact us for news or articles - dineshdamahe86@gmail.com

Next Post

कुंभ क्षेत्र में स्थापित महर्षि आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के प्रदर्शनी कक्ष को 10,000 से अधिक श्रद्धालुओं ने दी भेंट !

Sun Feb 16 , 2025
– विज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासन आदि क्षेत्रों के विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा महर्षि आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के कार्य की सराहना ! प्रयागराज :- महर्षि आध्यात्मिक विश्वविद्यालय द्वारा कुंभ क्षेत्र के सेक्टर 7 में एक प्रदर्शनी कक्ष स्थापित किया गया है। इस प्रदर्शनी कक्ष को अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है, और 11 फरवरी तक 10,000 से अधिक श्रद्धालु इस कक्ष का लाभ ले […]

You May Like

Latest News

The Latest News

Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com
error: Content is protected !!