– 40 महीनों में जीरो प्रगति
– 3.56 करोड़ का तैयार था एस्टीमेट
नागपुर :- जिले के सावनेर तहसील में चिचोली खापरखेड़ा व पोटा चनकापुर ग्राम पंचायत क्षेत्रों का लाखों लीटर गंदा पानी यानी सीवेज वाटर कोलार नदी में जा रहा जिससे नदी प्रदूषित हो गई है.
इसे रोकने के लिए मार्च 2021 तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट यानी एसटीपी निर्माण करने का आदेश राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीपी) ने जून 2020 को जिप प्रशासन को दिया था. हालत यह है कि करीब 40 महीने बीत गए ट्रीटमेंट प्लांट तैयार ही नहीं किया जा सका और नदी में गंदा पानी अभी भी छोड़ा जा रहा है. इतना ही नहीं एनजीपी ने अपने आदेश में यह तक चेतावनी दी थी कि अगर दिये गए समय में ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित नहीं किया तो जिप प्रशासन को हर वर्ष 5 लाख रुपये का दंड लगाया जाएगा. हास्यास्पद यह है कि एनजीपी ने अपनी ही इस चेतावनी को भुला दिया है और जिप प्रशासन पर किसी तरह का दंड नहीं लगाया गया है. कुछ जिप सदस्यों का कहना है कि अपने ही आदेश को भुला देना साबित करता है कि एनजीपी के कर्णधार भी इस मामले में गंभीर नहीं हैं.
MPCB से नहीं मिली निधि
बताते चलें कि केन्द्र सरकार द्वारा नदियों को स्वच्छ करने का प्रयास शुरू किया गया है जिसके लिए जलशक्ति मंत्रालय भी स्थापित की गई है. अनेक नदियों में गांवों से गंदा पानी नदियों में छोड़े जाने से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. इसे रोकने के लिए सभी ग्राम पंचायतों व स्थानीय संस्थाओं को एनजीपी ने ट्रीटमेंट प्लांट निर्माण के कड़े आदेश दिये थे. इसी के चलते कोलार को प्रदूषण से बचाने के लिए चिचोली में 0.99 हेक्टेयर जमीन पर एसटीपी निर्माण प्रस्तावित है. जिप की ओर से 3.56 करोड़ रुपयों का एस्टीमेट तैयार कर महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल को भेजा गया. बार-बार पत्र भेजने के बावजूद निधि उपलब्ध नहीं हुई.
अब डिसेंट्रलाइज्ड वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की तैयारी
निधि नहीं मिलने के चलते जिप प्रशासन ने पानी व स्वच्छता विभाग से उपलब्ध निधि से ‘लो कास्ट ट्रीटमेन्ट प्लांट’ के लिए प्रयत्न किया. इसके लिए नीरी की भी मदद ली गई लेकिन लो कास्ट प्लांट के लिए ग्रामीणों ने रुचि नहीं दिखाई. मविआ सरकार में मंत्री रहे सुनील केदार ने इस संदर्भ कई बैठकें ली और निधि के लिए प्रयास भी किया लेकिन मामला लटका ही हुआ है. जानकारी के अनुसार अब नांदेड़ की तर्ज पर डिसेंट्रलाइज्ड वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट निर्माण का नियोजन किया गया है. एक एजेंसी द्वारा इस संदर्भ में जमीन का सर्वे भी किया है. प्रकल्प के लिए 3 से 4 करोड़ रुपयों का खर्च अपेक्षित है लेकिन फंड के अभाव में अब भी यह लटका हुआ है.