10 निरीक्षक के भरोसे 5000 MEDICAL STORE

– सालाना 2500/ दुकान कमीशन लेकर निरीक्षण के नाम पर हो रही लीपापोती

नागपुर :- दवा सह स्वास्थ्य सम्बंधित उत्पाद प्रत्येक मनुष्य के लिए ‘जीवनसंगिनी’ के रूप में सबसे ज्यादा जरुरी हैं.इसे प्राप्त करने के लिए लाइसेंसी/अधिकृत सरकारी/गैर सरकारी इकाइयों अर्थात अधिकृत MEDICAL STORE ही अंतिम पर्याय हैं.इन्हें नियंत्रण करने के लिए केंद्र हो या राज्य सरकार के पास कोई ठोस व्यवस्था नहीं हैं,इसलिए इस क्षेत्र में स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले माफिया सक्रिय है ,जिनके सामने केंद्र और राज्य सरकार नतमस्तक हैं.

उदाहरण के तौर पर नागपुर जिले के STATE FOOD AND DRUG DEPARTMENT में एक विभाग प्रमुख और लगभग एक दर्जन FOOD INSPECTOR हैं.इनमें से कुछ कागजो पर FOOD तो कुछ DRUG के लिए तैनात हैं.

FOOD INSPECTORS के अधीनस्त जिले में अनगिनत टपरी से लेकर 5 स्टार श्रेणी के FOOD बनाकर बेचने/परोसने के जगह/होटल/रेस्टॉरेंट/टपरी/चलता-फिरता होटल आदि हैं.

वहीं दूसरी ओर DRUG INSPECTORS के अधीनस्त जिले में लगभग 5000 MEDICAL STORES/STOCKIST सहित डिस्पेंसरी/अस्पतालें हैं.इसके अलावा बिना अनुमति वालों की गिनती ही नहीं हैं.

उल्लेखनीय यह है कि FOOD AND DRUG DEPARTMENT की नियमावली काफी चुस्त-दुरुस्त हैं,लेकिन विभागों में जरूरत अनुसार FOOD और DRUG INSPECTOR जितनी चाहिए उतनी हैं नहीं।

नतीजा तमाम INSPECTOR दुकान-दर-दुकान निरीक्षण करने के बजाय अपने अपने टेबल पर कागजें काला-पीला कर रहे हैं.जिसके एवज में प्रत्येक दुकानदार/इकाई सालाना कम से कम 2500 रूपए ‘देन’ के रूप वर्षो से चूका रहे है,2500 ‘देन’ देना उन्हें इसलिए आसान पड़ता क्यूंकि दुकानों पर निरिक्षण करने आएंगे तो नियमानुसार खामियां निकाल जुर्माना ठोक देंगे,जो भारी पड़ेगा।

उक्त ‘देन’ का संकलन इस क्षेत्र के तय माफिया कर रहे या फिर शहर/ग्रामीण क्षेत्र में सक्रिय संगठन पदाधिकारी। जब ‘देन’ दे रहे तो दुकानों/वितरकों/अस्पतालों/डिस्पेंसरी आदि में लापरवाही ‘सर चढ़ के बोल’ रही हैं.इस ‘देन’ के कारण कमिश्नर से लेकर निरीक्षकों को अपना मासिक सरकारी वेतन ‘TOUCH’ करने की कभी जरुरत ही नहीं पड़ती।घरों के कार्यक्रम या बाहरी आउटिंग का खर्च दवा कंपनी वाले उठा लेते है.

इतना ही नहीं इन दवा माफियाओं जैसे अपोलो/मेड प्लस आदि में गलती से भी कभी आजतक निरीक्षण नहीं हुआ.मेडिकल स्टोर से सम्बंधित संगठने एक तरफ बड़े बड़े अस्पतालों के मेडिकल स्टोर खरीदने में लीन है तो दूसरी ओर FOOD AND DRUG DEPARTMENT की मांग पूर्ति कर उन्हें जेब में लिए ‘जो मन में आया,वो करवा रही’ हैं. कारण कॉर्पोरेट स्तर पर ‘मंत्री – संत्री ‘ सब ‘SET हैं और जान जोखिम में ‘बीमार वर्ग’ हैं.है न ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’…

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