कठिन रास्तों व नक्सल दहशत के बावजूद पहुंचते है पर्याटक।
बारूदी विस्फोटों, पोलिस नक्सली मुठभेडों, घने जंगलों एवं विशालकाय पहाडों के लिये देश मे पहचाने जाने वाला दंडकारण्य क्षेत्र मे ऊपर वाले ने भी खुब कृपा बरसाई है। इस क्षेत्र मे ऐसे अनोखे नायाब स्थल मौजूद है। जो आज भी बाहरी दुनिया के मुकाबले अपना अलग पहचान रखते है। चाहे वह एतिहासिक महत्व को लेकर हो या फिर अपनी सुन्दरता के मामले मे आज भी नैसर्गिक रुप से अव्वल दर्जे के बताये जाते है। छत्तीसगड का बीजापुर जिला जो की दंडकारण्य क्षेत्र के तहत माना गया है। जिसे नक्सल प्रभावित जिलों मे से एक कहा जाता है। मगर इसके आधीन ऐसे अनेकों नैसर्गिक केंद्र मौजुद है जो पहली नजर मे हि पर्यटकों की मन को मोह लेते है।
छत्तीसगड कि बीजापुर जिला जो भौगोलिक रुप से घने जंगलों, विशालकाय पहाडों, नैसर्गिक केंद्रों को अपने मे समेटा हुआ क्षेत्र है। इसके अलावा यह भौगोलिक रुप से दो पडौसी राज्यों के साथ अपनी सीमायें साझा करता है। इस जिले के उसूर ब्लाक मे एक जल प्रपात मौजुद है। जिससे नंबी जल प्रपात कहा गया है। यह बीजापुर जिले के उसूर गांव के समीप स्थित है। जो घने जंगलों के बीच मौजुद है। हालाकि इस तक पहुंचना बाहरी दुनिया के लोगों के लिये उतना आसान नही कहा गया है। कठिन ढगर के बावजूद पर्यटन प्रेमी इस तक पहुंच कर इसका दिदार जरुर करते है। अक्सर हम हालिवुड़ व बालीवुड के मुवीस मे जल प्रपातों को देखा करते है। जब उन्ही जल प्रपातों को प्रत्यक्ष रुप से देखने का अवसर मिलता है तो फिर क्या कहना।
नंबी जल प्रपात के बारे मे स्थानीय लोगों ने बताया है की यह कुछ वर्ष पुर्व हि बाहरी दुनिया के लोगों के जानकारी मे आया है। हालाकि स्थानीय लोगों को इसकी जानकारी काफी अर्से से रही है। बीते कुछ वर्षो के दरम्यान इस जल प्रपात को देखने जाने वाले पर्याटकों की संख्या मे लगातार इजाफा हो रही है। बताया गया है की जल प्रपात के सबसे निचले स्थान से इसकी उंचाई को देखने पर यह किसी गगन चुम्बी इमारत से कम नही दिखायी देती है। विशेषकर साल के जुलाई से सितम्बर के मध्य यह अपने पूरे शबाब पर होता है। उस दौरान इसकी सुन्दरता मे चार चाँद लग जाते है। उंचे व पहाड़ के कालीन पत्थरों से छन छन करता हुआ शुद्द जल जब तेज रफ्तार से गिरती है। तब वह दृश्य अत्यंत मनमोहक व अकाल्पनिक सा प्रतीत होता है।
पहुंचने का रास्ता।
नंबी जल प्रपात तक पहुंचने का रास्ता बीजापुर जिला मुख्यालय से पक्की सड़क के रास्ते उसूर तक पहुंचना होता है। जहां से स्थानीय लोग व गाईड के सहयोग से जंगल को पार कर इस तक पहुंचना होता है। हालाकि उसूर गांव से इस तक पहुंचने मे थोडी सी कठिनाई जरुर आ सकता है। मगर इसके करीब पहुंचने के बाद जब इसकी नैसर्गिक सुन्दरता को निहारेंगे तब यकीन मानिये रास्ते भर की पूरी थकान व तकलीफ मन मस्तिष्क से पूरी तरह से ओजल हो जायेगी।
सतीश कुमार, गडचिरोली ।