आस्थाकेंद्रों का अनादर रोकने की अपेक्षा शासकीय अधिकारियों द्वारा बार मालिकों का बचाव; अधिकारियों पर कार्रवाई करें ! – हिन्दू जनजागृति समिति की मांग

– 5 वर्ष बाद भी शासनादेश का पालन नहीं; शराब की दुकानों व ‘बार’ को देवता-राष्ट्रपुरुषों के नाम !

अनेक वर्षाें के प्रयासों के उपरांत आस्थाकेंद्रों के प्रति आदर बनाए रखने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने शराब की दुकानों एवं बियर बार को दिए देवी-देवताओं, राष्ट्रपुरुषों, संतों, गढ-किलों के नाम बदले जाएं, इस हेतु 4 जून 2019 को आदेश जारी किया; परंतु 5 वर्ष उपरांत भी मुंबई के 318 मद्यालय और बार में से 208 अर्थात 65 प्रतिशत दुकानों को देवता एवं राष्ट्रपुरुषों के नाम हैं, ऐसी जानकारी सूचना के अधिकार के माध्यम से सामने आई है । जानकारी मिली है कि शासन के आदेश का कठोरता से पालन करने के स्थान पर राज्य उत्पादन शुल्क विभाग के अधिकारियों ने इस आदेश को वापस लेने के लिए सिफारिश की है । श्रद्धालुओं, राष्ट्रप्रेमियों एवं शिवप्रेमियों की आस्था का आदर करने की अपेक्षा बार मालिकों की वकीली करनेवाले उत्पादन शुल्क विभाग के अधिकारियों पर महाराष्ट्र शासन कठोर कार्रवाई करे तथा निर्धारित समयसीमा में शराब की दुकानों और बियर बार को दिए देवताओं, राष्ट्रपुरुषों एवं गढ-किलों के नाम तुरंत बदले जाएं । अन्यथा सडकों पर उतरकर आंदोलन करना पडेगा, ऐसा इशारा हिन्दू जनजागृति समिति ने दिया है ।

हिन्दू जनजागृति समिति ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस एवं राज्य उत्पादन शुल्क विभाग के आयुक्त के पास शिकायत दर्ज करवाई है तथा अधीक्षक, उत्पादन शुल्क विभाग मुंबई से प्रत्यक्ष मिलकर निवेदन दिया है । इस समय हिन्दू जनजागृति समिति के सतीश सोनार के साथ हिन्दुत्वनिष्ठ सर्वश्री रविंदर दासारी, संदीप तुळसकर, सुशील भुजबळ, विलास निकम एवं मनीष सैनी उपस्थित थे ।

सूचना के अधिकार के अनुसार पाया गया कि मुंबई में ‘श्रीकृष्ण बार एंड रेस्टॉॅरंट’, ‘दुर्गा रेस्टॉॅरंट एंड बार’, ‘सिद्धिविनायक बार एंड रेस्टॉरंट’, ‘हनुमान बार एंड रेस्टॉरंट’, ‘गणेश बियर शॉपी’, ‘महालक्ष्मी वाइन्स’, ‘सह्याद्री कंट्री बार’ आदि देवताओं के नाम, तथा संतों एवं गढ-किलों के भी नाम शराब की दुकानों एवं बार को दिए हैं । वास्तव में नियम के अनुसार कार्रवाई करने की अपेक्षा उत्पादन शुल्क विभाग को शराब की दुकानों एवं बार के नाम बदलने के लिए अनेक शासकीय विभागों से पत्रव्यवहार करना पडता है । इसलिए अल्पावधि में यह करना संभव नहीं । अतः यह आदेश निरस्त (रद्द) किया जाए और नए नाम देते समय आस्थाकेंद्रों के नाम न देने का सुधार विभाग ने सुझाया है ।

5 वर्ष उपरांत भी ‘समय लगेगा इसलिए कार्रवाई नहीं की जा सकेगी’, ऐसा उत्पादन शुल्क विभाग का कहना उचित नहीं है । नियमों का पालन करवाना अधिकारियों के लिए बंधनकारक है । इसलिए उत्पादन शुल्क विभाग शासन से बार मालिकों की वकीली न करते हुए, शासन के आदेशानुसार कठोर कार्रवाई कर करोडों हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करे । मुंबई की भांति राज्य में अन्यत्र भी ऐसी ही गंभीर परिस्थिति की संभावना को नकारा नहीं जा सकता । इसलिए पूरे राज्य में शासन के निर्णय को लागू करवाया जाए, ऐसा समिति ने पत्र में कहा है ।

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