-रोजगार की जगह कंपनियां बंद हो रही,पिछले 2 साल में लाखों बेरोजगार हुए
नागपुर : राज्य में जूनियर और सीनियर कॉलेजों के साथ-साथ विभिन्न व्यावसायिक डिग्री, डिप्लोमा आदि में पढ़ने वाले अनुसूचित जाति और नव-बौद्ध छात्रों को छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करने के लिए एक बार फिर से समय बढाकर दिया गया है।
दूसरी ओर केंद्र सरकार की दोहरी नित के कारण रोजगार के अवसर तैयार होने के बजाय कंपनियां या तो छटनी पर उतारू है या फिर कंपनियां बंद हो रही.इस कारण देश में शिक्षित बेरोजगार दोहरी मार झेल रहे.
सामाजिक न्याय मंत्री धनंजय मुंडे ने भारत सरकार की पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना 2021-22 के लिए आवेदन करने और पुराने आवेदन को नवीनीकृत करने के लिए 15 फरवरी, 2022 की समय सीमा दी है।
पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना अनुसूचित जातियों और नव-बौद्धों के छात्रों को ट्यूशन फीस, परीक्षा शुल्क, रखरखाव भत्ता आदि के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस योजना के लाभ हेतु आवेदन करने की प्रक्रिया MAHADBT प्रणाली पर है।
धनंजय मुंडे ने कहा कि उच्च शिक्षा में कुछ विषयों के लिए प्रवेश प्रक्रिया और राउंड अभी भी जारी है, इसे देखते हुए छात्रों के लिए पोस्ट-मैट्रिक के साथ-साथ पिछले आवेदन के नवीनीकरण के लिए आवेदन करने की समय सीमा 15 फरवरी तक दी गई है।
कॉलेजों को पुराना बकाया नहीं मिला
राज्य सरकार एक तरफ छात्रों को छात्रवृत्ति देने के लिए प्रोत्साहन हेतु निरंतर प्रयास कर रही,लेकिन सभी सम्बंधित महाविद्यालयों को छात्रवृत्ति की राशि देने में पिछले कुछ सालों से आनाकानी कर रही,नतीजा अमूमन महाविद्यालाओं में शिक्षक/कर्मियों को 9 से साल भर का वेतन नहीं दिया गया,नतीजा शिक्षक और कर्मी वर्त्तमान महाविद्यालय छोड़-छोड़ अन्यत्र जगह भाग रहे हैं.कुछ सक्षम महाविद्यालय को छोड़ दे तो पूर्वी विदर्भ के अधिकांश कॉलेजों की यहीं हालत हैं.
सरकार कहती कर्ज लेकर समय काटो
उक्त मामले को लेकर महाविधालय संगठनों ने राज्य सरकार के समक्ष गुहार लगाई तो उनका निर्देश मिला कि सरकारी अनुदान देर-सबेर मिल जायेगा,तत्काल इसे संभालने के लिए बैंकों से लोन ले लें.यह नहीं सुझाए कि लोन कैसे वापिस की जाएगी,उसका ब्याज कौन भरेगा।
ऐसे में कई कॉलेज प्रबंधन बैंकों से मिले तो बैंकों ने इतने चक्कर खिलाए कि कुछ तो भाग खड़े हुए तो कुछ से ऐसी-ऐसी डिमांड की कि लोन से ज्यादा की संपत्ति जमा कर लोन लें.लेकिन आजतक किसी महाविद्यालय को लोन न मिलने की खबर हैं.
केंद्र की नीति शिक्षा विरोधी
मोदी सरकार के कार्यकाल में शिक्षा क्षेत्र के उत्थान हेतु कोई भी उल्लेखनीय कार्य नहीं किये गए.नतीजा शिक्षण क्षेत्र ‘कोमा’ में पहुँचने के कगार पर हैं.और कुछ साल महाविधालय संचालकों ने खुद की अस्तित्व नहीं बचाई और महाविद्यालय का वातावरण शिक्षण योग्य नहीं रखा तो उंगलियों पर गिनने लायक महाविधयालय ही शुरू दिखेंगे,फिर पढ़ने वालों की भीड़ में डोनेशन प्रथा का चलन शुरू हो जायेगा,ऐसे में धनिक वर्ग ही शिक्षित हो पाएंगे।
केंद्र सरकार के करीबियों की माने तो केंद्र सरकार की नज़रअंदाजगी का मुख्य कारण यह है कि देश में अधिकांश शिक्षण संस्था कोंग्रेसियो के हैं,जिसे नेस्तनाभूत करना भाजपा नेतृत्व की प्रथम ध्येय हैं.