नागपुर / सावनेर – स्थानीय अरविन्द इंडो पब्लिक स्कूल में मानव अधिकार दिवस पर कक्षा पांचवीं से नाैवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए कार्यशाला आयोजित की गई। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने 12अक्टूबर1993 को मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत अपने स्थापना काल से ही मानव अधिकारों के संवर्धन एवं संरक्षण के कार्य करना प्रारंभ कर दिया था 24 वर्षों के इस शानदार सफर में अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित हुए कार्यशाला को संबोधित करते स्कूल के प्राचार्य राजेन्द्र मिश्र ने कहा कि मानवाधिकार वे नैतिक सिद्धांत है जो मानव व्यवहार से संबंधित कुछ निश्चित मानक स्थापित करता है। ये मानवाधिकार स्थानीय तथा अन्तरराष्ट्रीय कानूनों द्वारा नियमित रूप से रक्षित होते हैं।
10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्रसंघ की सामान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया। संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में यह कथन था कि संयुक्त राष्ट्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसे मानवाधिकार हैं जो कभी छीने नहीं जा सकते, मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं। इस घोषणा के परिणाम स्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा अंगीकार की। इस घोषणा से राष्ट्रों को प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और वे इन अधिकारों को अपने संविधान या अधिनियमों के द्वारा मान्यता देने और क्रियान्वित करने के लिए अग्रसर हुए। राज्यों ने उन्हें अपनी विधि में प्रवर्तनीय अधिकार का दर्जा दिया।
चूंकि मानव परिवार के सभी सदस्यों के जन्मजात गौरव और समान तथा अविच्छिन्न अधिकार की स्वीकृति ही विश्व शांति न्याय और स्वतंत्रता की बुनियाद है, चूंकि मानव अधिकारों के प्रति उपेक्षा घृणा के फलस्वरूप ही ऐसे बर्बर कार्य हुए जिससे मनुष्य की आत्मा पर अत्याचार किया गया, चूंकि एक ऐसी विश्व व्यवस्था की उस स्थापना को सर्वसाधारण के लिए सर्वोच्च आकांक्षा घोषित किया गया है। संयुक्त राष्ट्रों के सदस्य देशों ने यह प्रतिज्ञा की है कि वे संयुक्त राष्ट्रों के सहयोग से मानवाधिकारों और स्वतंत्रताओं का स्वरूप ठीक-ठीक समझना सबसे आवश्यक है। 30 अनुच्छेद हैं, जिन्हें समझना जरूरी है।
मानवाधिकार आयोग भेदभाव तथा नस्लवादी और यौन उत्पीड़न से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए एक निःशुल्क, अनौपचारिक पूछताछ व शिकायत सेवा उपलब्ध कराता है। मानवाधिकार का उद्देश्य नौकरशाही पर रोक लगाना, मानव अधिकारों के हनन को रोकना तथा लोक सेवक द्वारा उनका शोषण करने में अंकुश लगाना है। मानव अधिकार समिति एक बहु-सदस्यीय संस्था है जिसमें एक अध्यक्ष सहित् 7 सदस्य होते हैं। यह आवश्यक है कि 7 सदस्यों में कम से कम उपदेन (Ex- offcio) सदस्य हों । राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का मुख्यालय नईदिल्ली में स्थित है। संस्था के कार्यपालक न्यायमूर्ति अरुणकुमार मिश्रा, अध्यक्ष, जयदीप गोविन्द महासचिव हैं । मूल, आधारभूत, अंतरनिहित, प्राकृतिक एवं जन्मसिद्धअधिकार मानवाधिकार में आते हैं।
मानवाधिकारों से जुड़े गरीबी,भूखमरी,बेरोजगारी , कुपोषण, नशा, सुनियोजित अपराध, भ्रष्टाचार, विदेशी अतिक्रमण, शस्त्रों की तस्करी, आतंकवाद, असहिष्णुता, रंगभेद, धार्मिक कटटरता आदि बुराइयों का योजनाबद्ध तरीके से निर्मूलन जरूरी है।
स्कूल के प्राचार्य राजेन्द्र मिश्र ने विद्यार्थियों के साथ सीधा संवाद करते हुए कहा कि अधिकारों के प्रति जनजागृति जरूरी है। भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना हम सभी का नैतिक कर्तव भी है और दायित्व भी ! प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करना भी जरूरी है। सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा भी हर नागरिक का नैतिक कर्तव्य है। किसी भी देश के विकास के लिए उस देश में सामाजिक विकास एवं सामाजिक न्याय व्यवस्था का होना जरूरी होता है। विद्यार्थियों नेअपने अपने लेख स्कूल के साथ साझा किया जिन्हें सूचना फलक पर अंकित किया गया। कार्यशाला के सफलतार्थ श्रीमती वन्दना यादव, वन्दना बारापात्रे, निवेदिता कोचे, शुभम कारोकार एवं रंजना ठाकूर विशेष योगदान दिया।
स्कूल के उपक्रम की सराहना करते स्कूल के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. आशिष देशमुख ने सहभागी शिक्षकों एवं विद्यार्थियों का अभिनंदन किया।