गरीबों की ज्वार की रोटी अमीरों की थाली में , जवाहर को आए अच्छे दिन भाव भी बढे

पारशिवनी :- विघटन एक वर्षों से ज्वार की फसल तहसील में ही नहीं तो जिले से गायब होने से अच्छे-अच्छे जुबान में पानी छोड़ने वाले हर्ड को भी अनेकों को हाथ धोना पड़ा वैसे ही अब गरीबों की ज्वार की रोटी अमीरों की थाली में भोजनालय में दिखने लगी है

ज्वार को दाम भी अच्छे मिलने से किसान अब इस फसल की ओर मुड़ने लगा है अच्छी किस्म की द्वारका धाम 30 से 35 रुपए से अधिक जाने से गेहूं से अधिक ज्वार की मांग दिनों दिन बढ़ रही है।

पहले दिखने वाली गरीबों के ठाणे की जुगाड़ की रोटी अमीरों की थाली में जाकर बैठते हुए होटल के मेनू कार्ड पर भी वह विराजमान हुई है विगत कुछ वर्षों में सस्ते अनाज के दुकान से गेहूं कम कीमत में भारी मात्रा में मिलने से गेहूं की रोटी पर ईशानी नहीं तो खेत मजदूर भी अपनी भूख मिटाने लगे अब सोयाबीन के भाषण निकलने के बाद रब्बी में चना वी गेहूं का बुवाई बढ़ाने लगी इसलिए ज्वारे की फसल तहसील से गायब हुई जवाहर की फसल को अधिक पाने की पानी की जरूरत नहीं होती परंतु परेशानी होने से तहसील के किसने ने जावर की और की बुवाई क्षेत्र में काफी कमी आई ज्वार की कमी से एक और थाली की भाकर कोई वही दूसरी ओर पालतू जानवरों का चारे के रूप में ले जाने वाला कड़वा भी गायब हुआ।

बाजार में ज्वारी के दम 30 से 35 रुपए प्रति किलो से अधिक है इसलिए गेहूं से गेहूं की रोटी से ज्वार की रोटी होटल में महंगी हुई है इस दौरान जवान पर पानी छोड़ने वाला ज्वार का उल्टा भी दिखाई नहीं देता ज्वार की भुट्टे भरने के समय पक्षी द्वार के भुट्टे पर बैठते हैं उसे भागने के लिए सुबह से ही किसने के बच्चे गिलौल लेकर मचान पर बैठकरपक्षियों को भागने का कम करते द और सुबह ही चना अथवा द्वारका कर पक्षी हकलाने की पढ़ती थी परंतु अब अनेक किसने ने ज्वारी की ओर पीठ घूमने से हरदा तथा थाली में रोटी दिखती नहीं।

पहले के समय यानी विभक्ति से 35 वर्ष पूर्व तहसील में कुछ क्षेत्र में जारी की फसल काफी अच्छी होती थी अनेकों के खेतों में गांव रानी ज्वार के भुट्टे दिखते  इसके बाद shankareet जवाहर ने उसकी जगह ली बाद में किसान गेहूं सोयाबीन सूर्य फूल वी कपास इस फसलों की और मुडा इसके बाद मिर्ची का उत्पादन उसे जमाने में होता था परंतु अब इंतजार की फसल ही गायब होने से ज्वार के रोटी की कीमत गेहूं की रोटी से अधिक महंगी हुई है ज्वार के फसल के साथ ही कड़वे का चारा भी खत्म होने की कगार पर है।

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