– मंत्रोच्चार, अग्निहोत्र, यज्ञ और साधना के माध्यम से पर्यावरण का वास्तविक संतुलन संभव – शोध का निष्कर्ष
प्राचीन भारतीय शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मांड समय चक्र (कालचक्र) के अनुसार ऊपर-नीचे होता रहता है। रज-तम गुणों के प्रभाव के बढने से पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पंचमहाभूतों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में वृद्धि होती है। इसलिए वैश्विक स्तर पर केवल भौतिक उपायों पर जोर देना पर्याप्त नहीं है; आध्यात्मिक स्तर पर प्रयास करना भी अत्यंत आवश्यक है। मंत्रोच्चार, अग्निहोत्र, यज्ञ और साधना के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन और पर्यावरण की आध्यात्मिक शुद्धि कर सकता है और इसके द्वारा पर्यावरण का संतुलन बनाए रखा जा सकता है, ऐसा प्रतिपादन महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के शॉन क्लार्क ने किया।
शॉन क्लार्क, ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (UN) द्वारा अज़रबैजान की राजधानी बाकू में आयोजित ‘COP29’ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में बोल रहे थे। ‘महर्षि आध्यात्मिक विश्वविद्यालय’ और ‘स्पिरिचुअल साइंस रिसर्च फाउंडेशन’ की ओर से शॉन क्लार्क ने ‘सामाजिक जागरूकता के माध्यम से क्या पर्यावरणीय हानि को कम किया जा सकता है?’ विषय पर शोध प्रस्तुत किया। इस दौरान उन्होंने यज्ञ के कुछ वीडियो और चित्र भी साझा किए। यह शोध सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत बालाजी आठवले के मार्गदर्शन में किया गया है।
शॉन क्लार्क ने आगे बताया कि आध्यात्मिक शुद्धता अर्थात सात्त्विकता का पंचमहाभूतों पर प्रभाव पड़ता है, यह कई उदाहरणों से सिद्ध हुआ है। नियंत्रित वातावरण में किए गए एक प्रयोग में यह पाया गया कि मंत्रोच्चार से अग्नि की लौ की ऊंचाई बढ जाती है। दूसरा उदाहरण – मुंबई के दो फ्लैट्स के पानी की बोतलों का ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ नामक उपकरण से परीक्षण किया गया। जिस फ्लैट के निवासी साधना (उपासना) करते थे, उनके पानी की बोतल का आभामंडल सकारात्मक था, जबकि जिस फ्लैट के निवासी साधना नहीं करते थे, उनके पानी की बोतल का आभामंडल नकारात्मक था। इससे यह स्पष्ट होता है कि मानव व्यवहार का पंचमहाभूत एवं पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है।
वर्तमान में पृथ्वी पर हो रहे पर्यावरणीय बदलाव 98% ब्रह्मांड समय चक्र (साइक्लिकल) बदलावों के कारण हो रहे हैं, जबकि केवल 2% बदलाव मानव गतिविधियों के कारण हैं। पेरिस सम्मेलन में पर्यावरणीय बदलावों के जो अनुमान दिए गए थे, उनकी तुलना में पर्यावरण की हानी अधिक तीव्र गति और गंभीरता से हो रहा है। वर्ष 2006 में ही ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ ने इस विषय पर आध्यात्मिक शोध कर यह निष्कर्ष निकाला था कि पर्यावरण की हानी के कारण केवल भौतिक नहीं हैं, बल्कि आध्यात्मिक भी हैं।
इस सम्मेलन में, ‘प्राचीन भारतीय शास्त्रों पर आधारित आध्यात्मिक सूत्रों की सहायता से पर्यावरणीय बदलावों की तीव्रता को कम करने का महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का यह प्रयास सराहनीय है,’ ऐसा मत आईएसआरएन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी संतोष गुप्ता और पर्यावरणविद एवं कर्मा लेकलैंड्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आश्वनी खुराना ने व्यक्त किया।
पिछले 8 वर्षों में ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ ने 20 राष्ट्रीय और 96 अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान सम्मेलनों में शोधपत्र प्रस्तुत किए हैं। इनमें से 14 अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में विश्वविद्यालय को ‘उत्कृष्ट प्रस्तुति’ पुरस्कार प्राप्त हुआ है।