नागपुर :- महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 को एक ऐतिहासिक राजनीतिक घटना के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, इन चुनावों में विकास, शिक्षा, और स्वास्थ्य, महंगाई जैसे मुद्दे चर्चा के केंद्र में नहीं रहे। इसके बजाय, धर्म और सांप्रदायिकता ने सभी दलों के प्रचार अभियानों को प्रभावित किया। यह प्रवृत्ति केवल महाराष्ट्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश में राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन चुकी है।
धर्म आधारित राजनीति की बढ़ती छाया
चुनाव प्रचार के दौरान, सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने धार्मिक मुद्दों को केंद्र में रखा। हिंदुत्व आधारित राजनीति करने वाले दलों ने अपनी नीतियों और अभियानों में धार्मिक भावनाओं का सहारा लिया। वहीं, विपक्षी दलों ने भी धार्मिक अल्पसंख्यकों का समर्थन जुटाने के लिए अपने रणनीति तय की। “बटेंगे तो करेगे”, “एक है तो सेफ है”, “न बटेंगे , न कटेंगे” जैसे चुनावी नारों ने जनता को भ्रमित कर दिया। अनेक सीटों पर वोटो का बटवारा ही निर्णायक भूमिका निभाएगा। जिसका प्रभाव कल होने वाले मतगणना पर दिखाई देगा।
धार्मिक आयोजनों, जातिगत समीकरणों, राष्ट्र पुरुषों और सांस्कृतिक प्रतीकों का चुनावी अभियानों में प्रयोग बढ़ा है। इसका एक बड़ा उदाहरण है कि चुनाव प्रचार में राष्ट्र निर्माता छत्रपति शिवाजी, डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर को प्रमुखताब्से सभी दलों ने उपयोग किया। साथ ही हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण, और धार्मिक जुलूस जैसे विषय प्राथमिकता में रहे।
मुद्दों की अनदेखी
महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में रोजगार, किसान आत्महत्या, बेरोजगारी और शहरीकरण जैसे गंभीर मुद्दे हैं। लेकिन इन पर चर्चा न के बराबर रही। नागपुर, पुणे, और मुंबई जैसे शहरों में आधारभूत ढांचे की कमी और ग्रामीण क्षेत्रों में पानी और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। बावजूद इसके, राजनीतिक दलों ने इन समस्याओं को दरकिनार कर दिया।
ध्रुवीकरण का असर
धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण ने वोटों के विभाजन को प्रभावित किया। नागपुर की छह विधानसभा सीटें इसका बड़ा उदाहरण हैं, जहां दलों ने अपनी रणनीति को जातीय और धार्मिक आधार पर तैयार किया। इसका परिणाम यह हुआ कि नीतिगत मुद्दों पर मतदान करने के बजाय, लोग धार्मिक और भावनात्मक मुद्दों पर केंद्रित रहे।
महाराष्ट्र चुनाव 2024 ने यह दिखाया कि भारतीय राजनीति में मुद्दों की जगह धर्म और भावनाओं का बोलबाला हो रहा है। अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो यह न केवल लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा, बल्कि समाज के समग्र विकास में भी बाधा बनेगा। धर्म की राजनीति को पीछे छोड़ते हुए मुद्दों पर आधारित राजनीति की ओर बढ़ना समय की मांग है।