आर्थिक लाभ की दृष्टि से चयनात्मक सागौन की खेती पर दिया जाता है जोर
पशु प्रेमियों और वन विभाग के अधिकारियों में नाराजगी
रामटेक :- जंगल का मतलब यह है कि तृणभक्षी, हिंस्त्र जानवरों और विभिन्न प्रकार के पक्षी जिस एक विशिष्ट परीसर मे रहत है वह। यह भी उतना ही सत्य है कि यदि जंगल में पर्याप्त मात्रा में भोजन और पानी उपलब्ध है, तो तृणभक्षी और हिंस्त्र जानवर वहा पर बडी ही सुलभता से वास्तव्य कर रह सकते हैं। चारा- तृणभक्षी- हिंस्त्र जानवर की एक श्रृंखला होती है और यदि इनमें से एक भी कम हो जाए, तो यह श्रृंखला बाधित हो जाती है और आश्रित या तो क्षेत्र छोड़ देते हैं या फिर उनका अस्तीत्व ही समाप्त हो जाता है। खास बात यह है कि चरागाहों पर शाकाहारी और शाकाहारी जीवों पर हिंस्त्र जानवर डिपेंड रहते हैं। बहरहाल, वन विभाग के अधीन अभयारण्य में वर्तमान स्थिति को देखते हुए हम चराई को छोड़ कर वन और उसके पशुओं के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं ऐसा सरकार के द्वारा दिखावा किया जाता है, और आर्थिक आय की दृष्टि से केवल सागौन वृक्ष लागवड और पर्यटन पर काफी जोर दिया जा रहा है। ऐसे में इससे शाकाहारी और शिकारी जानवरों का अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है और वन विभाग के कुछ अधिकारी व कर्मचारी समेत कुछ पशु प्रेमी अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं.
कुछ पशु प्रेमियों के साथ तालुका के वन विभाग के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों की राय ली गयी, उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। तदनुसार, चरागाहों (चारा) की एक श्रृंखला है – शाकाहारी – मांसाहारी। यदि किसी वन क्षेत्र में चारा पर्याप्त मात्रा में है, तो शाकाहारी वन्यजीव जो निर्वाह के लिए उस पर निर्भर हैं, वे आसानी से उस क्षेत्र को नहीं छोड़ते हैं। यह भी उतना ही सच है कि वे भी यहीं रहते हैं और प्रजनन के जरिए अपने झुंडों की संख्या बढ़ाते हैं। परिणामस्वरूप शाकाहारियों का अस्तित्व एक तथ्य है कि शाकाहारी जानवरों को खाने वाले जंगली जानवर भी यहाँ रहते हैं। शाकाहारियों के दो मुख्य भोजन घास और पत्ते हैं। इसलिए, जब तक ये दोनों खाद्य पदार्थ वन वातावरण में पर्याप्त मात्रा में हैं, तब तक वे एक ही क्षेत्र में रहते हैं। लेकिन समय के साथ, अगर शाकाहारी जीवों का भोजन कम या नष्ट हो जाता है तो शाकाहारी और शिकारी जानवर कम हो जाते हैं या अनिच्छा से ये शाकाहारी जंगली जानवर अपना मार्च आदमी के खेत की ओर मोड़ते हैं और यहाँ हमला करते हैं, फिर उनके पिछे जंगली जानवर भी उनका पीछा करते हैं और खेतों और मानव बस्तियों की ओर चले जाते हैं। नतीजन, किसानों द्वारा मेहनत से उगाई जाने वाली फसलों को भारी नुकसान होता है और साथ ही गांवों में जंगली जानवरों के हमले भी बढ़ जाते हैं। फिर इन सभी घटनाओं की जड़ वन क्षेत्र में चरागाहों की खेती ( चारा ) है और उस पर शासन ने जोर देना चाहिए ।
नियम और शर्तें बन जाती हैं बाधा
स्थानीय वन विभाग के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों ने कहा कि हमारे लिए चारागाह लगाना और उन्हें बड़े पैमाने पर लगाना कोई बड़ी बात नहीं है।एक साल में बड़ी मात्रा में चारागाह लगाए जा सकते हैं, लेकिन सरकार द्वारा लगाए गये नियम और शर्तें अभयारण्य में बाधा बन रहे हैं। अगर सरकार हमें अभयारण्य के विभिन्न हिस्सों में सागौन के पेड़ों को काटकर वहां चारागाह लगाने की अनुमति देती है, तो सिर्फ एक साल में हम वहां बड़े पैमाने पर चारागाह लगा सकते हैं और शाकाहारी जानवरों के लिए उन पर जीवित रहना बहुत आसान हो सकता है। और जंगली जानवर उन पर जीवित रह सकते हैं।
सरकार का पर्यटन पर जोर
सरकार पर्यटन यानि जंगल सफारी के माध्यम से पर्यटकों की जेब से पैसा इकट्ठा कर सरकार की आर्थिक आय कैसे बढ़ाई जाए, इस पर भी काफी जोर दे रही है। सरकार इस बात पर पूरा ध्यान दे रही है कि पर्यटकों की संख्या बढ़ाने के लिए क्या उपाय किए जाएं, लेकिन जिस चारागाह पर ( चारा ) पर तृणभक्षी प्रणि और उसपर हिंस्त्र प्राणि और इन सभी पर पर्यटन और पर्यटक डिपेंड है उस चारागाह की मात्रा ( लगवाडी ) बढानी की ओर सरकार ध्यान नही दे रही है ।