नागपुर :- सस्ते भाव मे जनता को बिजली आपूर्ति के नाम पर निजी पावर प्लांट निर्माता ऊधमियों ने महाराष्ट्र औधोगिक विकास निगम की जमीन हडपकर सरकार को करोडों का चूना लगाया है। यह सनसनीखेज आरोप आल इंडिया सोसल आर्गेनाइजेशन ने लगाया है। आर्गेनाइजेशन अध्यक्ष और वरिष्ठ समाज सेवी पत्रकार टेकराम सनोडिया शास्त्री ने बताया कि नागपुर बुटीबोरी परिसर सहित विदर्भ के अनेक जिलों में एम आई डी सी की जमीन पर तापीय बिजली परियोजना स्थापित करने के नाम जमीन हस्तगत कर सब्सिडी का लाभ उठाया और बाद मे वह भूमि दूसरी कंपनियों ऊंचे दामों मे को बेच दिया गया।
सनद रहे कि विदर्भ के अमरावती मे एमआईडीसी के भूखंड पर इंडिया बुल्स कंपनी 27000 मेगावाट क्षमता की विधुत परियोजना लगाई थी, सूत्रों की माने तो इंडिया बुल्स ने पावर प्लांट निर्माता ठेकेदारों को किये कार्यों का पूरा भुगतान नहीं किया और इस पावर प्लांट को हैदराबाद की रतन इंडिया कंपनी को बेच दिया गया।अब इसे रतन इंडिया पावर प्लांट के नाम से इसे जाना जाता है। परंतु पूर्व ठेकेदारों के बिलों का भुगतान पाने के लिए फर्म नियोक्ता चक्कर काट काटकर परेशान है। उसी प्रकार गोंदिया जिले के तिरोडा मे संपूर्ण एम आई डी सी अदानी पावर कंपनी को दे दी गई,यहां पर अदानी पावर लिमिटेड ने 3300 मेगावाट उत्पादन क्षमता की सुपर पावर प्लांट शुरु है।उसी तरह नागपुर के बुटीबोरी मे रिलायंस तथा वरोरा मे जीएमआर ने 600 मेगावाट और वर्धा पावर ने 440 मेगावाट क्षमता की बिजली परियोजना कार्यान्वित है। इसके अलावा अन्य कई कंपनियों ने एम आई डी सी की जमीन मे परियोजनाएं लगाई है। बताते है कि अदानी की 5 मे से 3 परियोजनाएं कार्यान्वित है। उसी तरह अमरावती मे रतन इंडिया की विधुत परियोजना कभी शुरु रहती कभी बिजली उत्पादन पूरी तरह ठप्प रहता है। वर्तमान परिवेश मे पूरी बिजली उत्पादन पूरी तरह से ठप्प अवस्था मे देखा जा सकता है। इसके अलावा रिलायंस के हाल वेहाल तो किसी से छिपे नहीं है। यही हाल जीएमआर और वर्धा पावर प्लांट के हैं? लैन्को पावर प्लांट ही एक एसी कंपनी है जिसका काफी विरोधाभास हुआ वह प्लांट स्थापित करने मे सफल नहीं हो सकी है। इसी प्रकार मिहान मे अभिजित समूह का 260 मेगावाट का संयत्र बन्द हालत मे है। नतीजतन नागरिक जनता जनार्दन को सस्ते दामों मे बिजली मिलने का स्नान-ध्यान ही रह गया।
कोई काम का नहीं रहा निवेश
यह सत्य है कि पावर प्लांट स्थापित करने के नाम पर हजारों करोड रुपए का निवेश किया गया जा चुका है, परंतु वर्तमान परिवेश मे वह स्थापित परियोजनाएं कबाड मे तब्दील हो रही हैं। सूत्रों का तर्कसंगत आरोप है कि कहीं सब्सिडी का लाभ मिलने के लिए यह छलावा किया गया या जब परियोजना चलाने मे अनुभवहीन आडे आ रही थी तो यह उपक्रम हाथों मे क्यों लिया गया? परिणामतः स्थानीय नागरिकों को परियोनाओं मे नौकरी व्यवसाय मिलने की आशा की किरण जागी थी? बेरोजगार नागरिकों का वह सपना अधुरा रह गया। और परियोजनाएं निर्माण के नाम पर सबसीडी का लाभ लेने वाले मौज कर रहे हैं।
MiDC की ही भूमि क्यों हडपी
उधमियों ने यदि विधुत परियोजना का निर्माण करवाना था तो जमीन खरीदकर पावर प्लांट स्थापित करवाना चाहिए था? इसके लिए महाराष्ट्र औधोगिक विकास निगम की ही जमीन का चयन क्यों किया गया? सूत्रों का तर्कसंगत आरोप है कि परियोजना के नाम पर सरकार से सब्सिडी का लाभ हासिल करना उनका मुख्य उद्देश्य था। कि पावर प्लांट के नाम पर सस्ती जमीन दे दी गई। आरोप के मुताबिक पावर प्लांट के लिए सस्ते दामों मे देने के पूर्व जन सुनवाई क्यों नही की गई। परिणामतः उधमियों को सब्सिडी हड़पना आसान हो गया?सस्ती दर पर बिजली देना था?वह कागजों तक सीमित रह गई।