नागपूर – आजकल के इस भागदौड़ भरे जीवन में बदलते खानपान और वातावरण में आ रहे गंभीर बदलाव के चलते बहुत से लोग कई समस्याओं से ग्रस्त हैं। हालात में ऐसी ही असामान्यता बनी रही तो बहुत संभव है कि, जीवन के एक पड़ाव पर पहुंचकर इन लोगों को कई बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, इसपर अभी से सतर्क हुआ जाए तो, हम खुद को इस गंभीर समस्या से बचा सकते हैं। इसी को देखते हुए हम आपको ऐसी औषधि के बारे में बताने जा रहे है, जिसका नियमित सेवन आपको भविष्य में होने वाली कई गंभीर बीमारियों से बचा सकता है।
इसे अतिबला या खिरैटी या गोक्षुरादि चूर्ण के नाम से भी जाना जाता है। इस चूर्ण के सेवन से शारीरिक कमज़ोरी जड़ से ठीक हो जाती है और दुबला पतला कमजोर व्यक्ति भी लंबे समय तक बलवान बन जाता है। आयुर्वेद में भी इसके चूर्ण को बड़ा महत्व दिया जाता है। बता दें कि, खिरैटी कई पौष्टिक गुणों से भरपूर होता है, जो हमारे शरीर में होने वाली कई तरह की कमियों की पूर्ति करते हुए हमें तंदुरुस्त रखने में मदद करता है। आमतौर पर यह बीज मध्य प्रदेश के खेतों के आसपास लगा मिल जाता है। इसके अलावा ये बीज आसानी से किसी भी पंसारी की दुकान पर मिल जाता है। आइये जानते हैं खिरैटी से होने वाले फायदों और उन्हें इस्तेमाल करने के तरीके के बारे में…।
-शरीर में शक्ति स्फूर्ति बढ़ाए
शरीर में कम ताकत होने पर खिरैंटी के बीजों को पकाकर खाने से शरीर में ताकत बढ़ जाती है। या खिरैंटी की जड़ की छाल को पीसकर दूध में उबालें। इसमें घी मिलाकर पीने से शरीर में शक्ति का विकास होता है।
-बवासीर में लाभकारी
अतिबला के पत्तों को पानी में उबालकर उसे अच्छी तरह से मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े में उचित मात्रा में ताड़ का गुड़ मिलाकर पीयें। इससे बवासीर में लाभ होता है।
–रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए
अतिबला के बीज 4 से 8 ग्राम सुबह-शाम मिश्री मिले गर्म दूध के साथ खाने से कमज़ोरी को समाप्त करने में पूरा लाभ होता है।
–पेट की समस्या
अतिबला के पत्तों को देशी घी में मिलाकर दिन में 2 बार पीने से पित्त के उत्पन्न दस्त की समस्या में तेजी से लाभ मिलता है।
–बार-बार पेशाब आना
खरैटी की जड़ की छाल का चूर्ण यदि चीनी के साथ सेवन करें तो पेशाब के बार-बार आने की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
चूर्ण बनाने की विधि
नागबला, अतिबला, कौंच के शुद्ध छिलका रहित बीज, शतावर, तालमखाना और गोखरू इन सब को बराबर वजन में लेकर कूट-पीस-छानकर महीन चूर्ण करके मिला लें और छन्नी से तीन-चार बार छान लें ताकि सब द्रव्य अच्छी तरह मिलकर एक जान हो जाएं। इसे एक-एक चम्मच सुबह-शाम या रात को सोते समय मिश्री मिले कुनकुने गर्म दूध का सेवन कर सकते हैं।
आयुर्वेद चिकित्सा में अतिबला को यौन शक्ति वर्द्धक एवं उत्तम धातु पौष्टिक औषधि माना जाता है | यह आयुर्वेद के वाजीकरण द्रव्यों में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है | प्राय: सम्पूर्ण भारत में आसानी से सड़क किनारे, खाली भूखंडो के आस – पास एवं रेलवे की पटरियों के पास देखने को मिल जाती है |
आज इस आर्टिकल युग में आपको अतिबला के बारे में सम्पूर्ण जानकारी, इसके फायदे, औषधीय गुण – धर्म, कौन – कौन से रोगों में उपयोगी है, अतिबला की पहचान एवं कहाँ उपलब्ध हो जाती है ? आदि के बारे में जानने को मिलेगा |
वैसे तो ‘जैसा नाम वैसा काम’ वाली कहावत इस औषधीय जड़ी – बूटी पर सटीक बैठती है | लेकिन बल वर्द्धन के अलावा भी अतिबला बहुत से रोगों में प्रयोग की जाती है | पुराने वैद्य एवं औषध द्रव्यों का ज्ञान रखने वाले इसे बल्य, ज्वरनाशक, कृमिनाशक, विषनाशक एवं गर्भ विकारों में उपयोगी मानते है |
अतिबला की पहचान –
अतिबला सम्पूर्ण भारत में पैदा होने वाली वनस्पति है | यह सड़क – किनारे एवं खाली जमीन, गरम आबो – हवा वाली जगह पर अधिक देखने को मिलती है | राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्यप्रदेश, एवं दक्षिणी भारत आदि प्रदेशों में आसानी से देखने को मिल जाती है |
आयुर्वेद के बलाचतुष्ट अर्थात १. बला, २. अतिबला, ३. नागबला और ४. महाबला से सम्बंधित औषधि है | इसका झाड़ीनुमा पौधा होता है जो ५ से ६ फीट तक ऊँचा हो सकता है | पौधे पर जुलाई माह में पुष्प आने शुरू होते है एवं सर्दियों तक पौधा फुल एवं फलों से भर जाता है |
इस पर पीले रंग के फुल आते है | अतिबला के फल को देख कर आसानी से इसे पहचाना जा सकता है | फल चक्राकार होते है इसकी ये रेखाएं (जैसा फोटो में देख सकते है) निचे से शुरू होकर ऊपर आकर मिलती है |
अतिबला को पहचानने का सबसे आसान तरीका इसका फल है | आप बस फल की बनावट को ध्यान रखें आसानी से राह चलते पहचान जायेंगे |
संसकृत मे अतिबला औषधीय गुण धर्म
बलाचतुष्टयं शीतं मधुरं बलकान्तिकृत |
स्निग्धं ग्राही समिरास्त्रपित्तास्त्रक्षतनाशनम ||
बलामूल त्वचचूर्णं पीतं सक्षिरशर्करम |
मुत्रातिसार हरति दृष्ट्मेन्न संशय: ||
हरेन्महाबला कृच्छ्रम भवेद्वातानुलोमिनी |
हन्यादतिबला मेहं पयसा सितया समम् ||
आयुर्वेद के अनुसार अतिबला का रस में मधुर , गुणों में लघु, स्निग्ध, पिच्छिल होती है | इसका वीर्य शीत होता है अर्थात यह ठन्डे तासीर की होती है | इसका विपाक (पचने के पश्चात) मधुर होता है |
यह वीर्यवर्द्धक, बलकारक, अवस्थास्थापक, वात-पित नाशक और मूत्र रोग का नाश करने वाली होती है | इसकी छाल कड़वी, ज्वर निवारक, ज्वर निवारक एवं कीड़ों को ख़त्म करने वाली होती है |
अतिबला के फायदे या उपयोग
विभिन्न रोगों में इसके फायदे एवं उपयोग आप निम्न देख सकते है –
रसायन एवं बल्य औषधि
अपने मधुर एवं शीत वीर्य जैसे गुणों के कारण शरीर में धातु वर्द्धन का कार्य करती है | आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसे उत्तम वाजीकरण द्रव्य माना गया है | वाजीकरण द्रव्य वे जड़ी – बूटियाँ होती है जो पुरुषों में काम शक्ति का संचार करती है |
मर्दाना ताकत के लिए अतिबला की जड़ के चूर्ण को दूध के साथ लम्बे समय तक सेवन करवाया जाता है |
वातविकार या दर्द
शरीर में विभिन्न जगह होने वाले दर्द में अतिबला के तेल का प्रयोग किया जाता है | आमवात, जोड़ो के दर्द एवं अन्य दर्द में इसके तेल को पानार्थ या आभ्यंतर मालिश के रूप में प्रयोग करवाते है |
यह शरीर में स्थित वातविकार को दूर करके दर्द (शूल) का नाश करती है | इसके इस्तेमाल से बला तेल एवं महाविषगर्भ तेल का निर्माण किया जाता है | ये दोनों ही तेल दर्द का शमन करने वाले होते है |
पेशाब की रूकावट
मूत्रकृच्छ अर्थात मूत्र त्याग में परेशानी होने पर इसके क्वाथ का प्रयोग किया जाता है | अतिबला से काढ़े का निर्माण करके इसे पीलाने से मूत्रकृच्छ की समस्या का अंत होता है |
काढ़े को बनाने के लिए अतिबला के २० ग्राम क्वाथ को ८०० ML पानी में उबाले जब पानी के चौथाई बचे तो इसे छान कर एवं ठंडा करके इस्तेमाल करें |
फोड़े – फुंसियाँ में अतिबला के फायदे
इसकी कोमल पतियों को बारीक़ पीसकर लुग्दी बनाकर फोड़े – फुंसी पर रखनी चाहिए और उसपर कपड़े का तह रखकर उस पर ठंडा पानी डालते रहना चाहिए |
इस प्रयोग से गाँठ में होने वाली जलन और झपका बंद होता है और अगर कोई गांठ है तो वह जल्दी पककर फुट जाती है |
बुखार होने पर
अगर आपको दाहयुक्त ज्वर या कंप एवं शीत ज्वर है तो अतिबला की जड़ और सौंठ का काढ़ा बना ले | काढ़ा बनाने के लिए दोनों को समान मात्रा में लेकर 8 गुना जल में उबालें | जब एक चौथाई जल बचे तब इसे आंच से उतार कर ठंडा करके सेवन करना चाहिए |
दो – तीन दिन के सेवन से ही कंप, शीत एवं दाहयुक्त ज्वर ठीक हो जाती है |
जंतु विष (जहर) में
अतिबला की जड़ को घिसकर लगाने से जानवर के काटे पर लगाने से जल्द ही जहर उतर जाता है | बिच्छु, ततैया आदि के जहर को उतारने के लिए अतिबला का प्रयोग पुराने समय से ही होता आया है |
अतिबला के पतों के काढ़े के फायदे
इसके पतों से क्वाथ का निर्माण करके खुनी बवासीर , सुजाक, प्रदाह, मूत्राशय की जलन एवं पैतिक आमातिसार में प्रयोग करवाया जाता है |
इन सभी रोगों में अतिबला के पतों का काढ़ा सेवन करने से लाभ मिलता है |
टीबी रोग में लाभदायक
टीबी में मुख्यत: मांस एवं बल का क्षय होता है | यह बल्य एवं मांसधातुवृद्धक होने से धातु का वृद्धन करती है | शुक्रधातु एवं औजवर्द्धन होने से यह टीबी रोग में शरीर को बल एवं औज लौटाने में सहायक होती है |
इस रोग में मुख्यत: बलाघृत का प्रयोग आयुर्वेदिक चिकित्सक करवाते है |
प्रमेह रोग में उपयोगी
धातुक्षय जन्य प्रमेह में बलामूल त्वक चूर्ण को दूध एवं शक्कर के साथ प्रयोग करवाया जाता है | इससे धातुवृद्धन का कार्य होता है एवं प्रमेह में लाभ मिलता है | शुक्रमेह में इसके पंचांग स्वरस का प्रयोग करवाया जाता है |
घाव आदि में अतिबला के फायदे
किसी चोट का घाव हो या अन्य घाव सभी में इसके पंचाग से घाव को धुलवाया जाता है | उपदंश, फिरंग एवं क्षत (कटे) आदि में इसकी जड़ को पीसकर बाँधने से घाव ठीक होने लगता है |
अतिबला सेवन विधि एवं मात्रा
इसके प्रयोज्य अंग जड़, बीज एवं पंचांग होते है | इसके चूर्ण को १ से ३ ग्राम तक मात्रा में शहद, घी या दूध के साथ सेवन किया जाना चाहिए | आयुर्वेद चिकित्सा में इसके इस्तेमाल से विभिन्न औषध योग बनाये जाते है जैसे –
बला तेलमहाविषगर्भ तेलबलाघृतमहानारायण तेलबलारिष्टपुनर्नवारिष्टअतिबला के विभिन्न भाषाओँ में पर्याय
संस्कृत – शीतपुष्पा , वृषगंधिका, अतिवला, वल्या, वालिका |
हिंदी – कंघी, कंघनी, झम्मी |
गुजराती – कंसकी |
सिन्धी – खपटो |
मराठी – मुद्रिका, चिकना थेदला |
तमिल – पेड़दुति |
अंग्रेजी – Indian Mellow.
लेटिन – Abutilon Indicum.
सहर्ष सूचनार्थ नोट्सः
उपरोक्त वनौषधि अतिबला का उपयोग करने से पूर्व किसी अनुभव कुशल वनौषधि आयुर्वेदिक चिकित्सक विशेषज्ञों की सलाह एवं मार्गदर्शन लेना अनिवार्य है।
संकलन एवं प्रस्तुति:
टेकराम उर्फ टेकचंद्र शास्त्री
संपर्कः 9130558008,