पथ विक्रय समिति की बैठक से करे परहेज.पथ विक्रेता यूनियन ने निगम आयुक्त से की गुहार

नागपूर :-नागपुर जिला पथ विक्रेता फेरीवाला संघ के एक शिष्टमंडल द्वारा कल बुधवार दिनांक 16 नवम्बर’2022 को  निगम आयुक्त राधाकृष्णन बी के नाम से विस्तारित निवेदन दिया गया. निवेदन के माध्यम से निगम आयुक्त को अनुरोध किया गया कि कृपया नगर पथ विक्रेता समिति (टी वि सी) की बैठक को बुलाने से परहेज करें क्योंकि बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ के समक्ष कई अन्य मामले प्रलंबित हैं। जानकारी के मुताबिक सभी प्रलंबित मुद्दों में टीवीसी के चुनाव पर सवाल उठाये गए है. साथ ही यूनियन ने यह भी आरोप लगाया की एक छल को झाँकने हेतु कई छल एक के बाद एक किये जा रहे है. निगम आयुक्त के अनुपस्तिथि में निवेदन उप-निगमायुक्त तथा समाज कल्याण विभाग के प्रमुख प्रकाश वराडे को ज्ञापन सौंपा गया.

पहले दिन से ही यूनियन ने निगम प्रसाशन पर यह आरोप लगाया था कि निगम प्रसाशन जानबूझकर पथ विक्रेता (आजीविका सरंक्षण व पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम २०१४ तथा पथ विक्रेता (आजीविका सरंक्षण व पथ विक्रय विनियमन) महाराष्ट्र नियम 2016 को लागू करने से बच रही है. अगर ऐसा कहे की जानबूझकर लागू नहीं करना चाहती तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. यंहा तक की निगम प्रसाशन द्वारा समय-समय पर केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा जारी किए गए आदेशों को भी दर किनार किया गया.

यंहा तक निगम प्रसाशन की हिम्मत बाद गई की वर्ष 2017 में रिट याचिका क्र. No.652/2016 के मामले में मा. मुंबई उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ द्वारा पारित आदेश का भी पालन निगम के अधिकारियों ने नहीं किया। उक्त रिट याचिका में मा. न्यायालय ने अनुच्छेद v में स्पष्ट रूप से निर्देश दिया था की पहले सर्वेक्षण में जितने भी फुटपाथ दुकानदारों की शिनाख्त होती है वे सभी चुनाव में हिस्सा लेने हेतु पात्र होंगे. लेकिन निगम प्रशासन ने मतदाताओं के रूप में केवल सिर्फ 3149 फुटपाथ दूकानदारों की सूची प्रदान की है।

यूनियन का यह स्पष्ट मत है कि निगम के अधिकारियों ने अपने आप को सुरक्षित करने हेतु मा. मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ की जानभूझकर गुमराह किय. निगम द्वारा 15 जुलाई 2019 को दायर किये गए हलफनामा विरोधाभासों, भ्रामक और गलत बयानों के अलावा और कुछ नहीं है। सूचना के अधिकार के माध्यम से प्राप्त जानकारी यूनियन द्वारा लगाए गए आरोपों की पुष्टि करती है।

वर्ष 2017 से 15 जुलाई 2019 के बीच दो वर्षों में निगम प्रशासन ने यह कभी भी इस बात का उल्लेख नहीं किया की उसे वर्ष 2017 में मुंबई उच्च न्यायलय द्वारा रिट याचिका 67562/ 2016 में दिए गए आदेश का पालन करना है. उक्त बातअदालत से क्यों छिपाई गई? निगम प्रशासन ने 15 जुलाई 2019 को दायर अपने हलफनामे में एक तरफ दावा किया कि वह पथ विक्रेता कानून 2014 को लागू कर रही हैऔर दूसरी ओर यह भी दावा किया कि वहमुंबई उच्च न्यायला के आदेश का अनुपालन भी कर रही है।

यह और कुछ नहीं बल्कि नागपुर उच्च न्यायालय के मन में भ्रम पैदा करने के उद्देश्य से निगम प्रशासन की ओर जानबूझकर किया गया प्रयास है। पथ विक्रेता अधिनियम २०१४ के अनुसार पांच वर्षों में एक बार अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। सर्वेक्षण करने के बाद फुटपाथ दुकानदारों को वेंडिंग सर्टिफिकेट देकर पंजीकरण कराना होता है और उसके बाद तुरंत चुनाव कराना होता है. वेंडिंग का प्रमाण पत्र जारी करने से पहले विक्रेताओं को कानून की धारा 5 के अनुसार स्व-सत्यापित हलफनामा प्रस्तुत करना होगा, यह घोषणा करते हुए कि उनके पास वेंडिंग के अलावा जीवित रहने का कोई साधन नहीं है.

ज्ञात रहे की महाराष्ट्र सरकार के शहरी विकास विभाग के उप सचिव ने 7 जुलाई 2017 को एक परिपत्र जारी कर राज्य के सभी निगम आयुक्तों को पथ विक्रेता कानून 2014 को लागू करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था। तत्कालीन निगम आयुक्त वीरेंद्र सिंह, 20 जुलाई 2017 के एक आदेश द्वारा सरकारी विभाग के पांच अधिकारियों को टीवीसी के पदसिद्द सदस्य घोषित किया था। और अन्य श्रेणी से सात सदस्यों का चयन करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय लिया गया था.

दिलचस्प बात यह है कि टीवीसी के पद सिद्द सदस्यों ने कई बैठकें कीं और निर्णय लिए भी लिए लेकिन वह सब बैठकें अवैध थे क्योंकि जो लोग बैठक में शामिल होते थे अधिकाँश लोग टीवीसी के पद सिद्द सदस्य नहीं थे। आमतौर पर, बैठकों में विभिन्न विभागों के बाबू शामिल होते थे।

टीवीसी के पद सिद्द सदस्यों की बैठक 21 जुलाई 2017 को हुई. जिसमे दिलीप फुलपगारे, वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक यातायात विभाग, डी.आर. गोर, कार्यकारी इंजीनियरिंग, एनआईटी, सुशील यादव, स्वास्थ्य विभाग, दिनकर उमरेडकर, अधीक्षक, बाजार विभाग, मनपा और एन. बी. भोवते पीडब्ल्यूडी ने भाग लिया। इनमे से कोई भी टीवीसी का सदस्य बनने के योग्य नहीं है.

दिनांक 27 अप्रैल 2017 को एक विज्ञापन जारी किया गया जिसमें इच्छुक गैर सरकारी संगठनों एवं समुदाय आधारित संस्थाओं से आवेदन आमंत्रित किए गए. बैठक में महाराष्ट्र नियम 2016 की धारा 11(4) के तहत सात सदस्यों की अन्य श्रेणी में नामांकन के इच्छुक लोगों से प्राप्त आवेदनों की छानबीन की गई।. दिलचस्प बात यह है कि इस बैठक में कौस्तुब चटर्जी और अब्दुल रजाक कुरैशी का नामांकन खारिज कर दिया गया था। दोनों ने गैर सरकारी संगठनों एवं समुदाय आधारित संस्थाओं श्रेणी के तहत आवेदन किया है।

निगम अधिकारियों की एक और बैठक दिनांक 14 फरवरी 2018 को बुलाई गई थी जिसमें नगर आयुक्त ने भाग लिया था, उनके अलावा अतिरिक्त नगर आयुक्त-तृतीय, थे। वी.डी. कपली कानूनी सलाहकार, दिलीप फुलपगारे, पुलिस निरीक्षक (यातायात), कार्यकारी अभियंता एनआईटी, सहायक। कमीशन मार्केट, एनएमसी, सभी दस सहायक आयुक्त, टोटके, बाजार अधीक्षक, छह बाजार सहायक और मनपा के अन्य अधिकारी उपस्थित थे। इस बैठक में उच्च न्यायालय की मुंबई खंडपीठ द्वारा वर्ष 2017 में पारित आदेश के संबंध में कोई उल्लेख नहीं किया गया।

दिनांक 30 जून 2018 को अचानक पद सिद्द सदस्यों की टीवीसी की एक बैठक बुलाई गई जिसमें 14 फरवरी 2018 को हुई बैठक के कार्यवृत्त की पुष्टि करते हुए कहा गया कि यह टीवीसी की बैठक थी। जबकि 14 फरवरी 2018 को टीवीसी की कोई बैठक नहीं हुई थी। यह सिर्फ मनपा अधिकारियों की एक बैठक थी। 30 जून 2018 की बैठक में ग्यारह व्यक्तियों ने भाग लिया। जिसमें टीवीसी के तीन सदस्य पद सिद्द सदस्य थे और बाकी अन्य विभिन्न विभागों के लिपिक कर्मचारी थे। इसलिए इसे लीगल मीटिंग नहीं कहा जा सकता।

यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि बैठक में यह बताया गया कि 5 मई 2018 को एक विज्ञापन के माध्यम से अन्य श्रेणी से टीवीसी के सदस्य बनने के इच्छुक लोगों से आवेदन आमंत्रित किए गए थे। विज्ञापन के जवाब में कौस्तुब चटर्जी का आवेदन उचित पाया गया इसलिए उनके नाम की सिफारिश करने का निर्णय लिया गया। हैरानी की बात है कि उनका आवेदन पहले ही खारिज कर दिया गया था। इस बैठक में 27,265 फेरीवालों का पंजीयन कराने का निर्णय लिया गया। इसके लिए मेसर्स विदर्भ इन्फोटेक प्रा. लिमिटेड को नियुक्त किया गया था। इसका क्या हुआ और इसका परिणाम भी कोई नहीं जानता। यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि इस बैठक में भी मुंबई खंडपीठ द्वारा वर्ष 2017 में पारित आदेश का कोई जिक्र नहीं किया गया.

इसी बीच आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय राष्ट्रीय शहरी उपजीविका मिशन (एनयूएलएम) मिशन निदेशक ने पथ विक्रेता (उपजीविका सरंक्षण व पथ विक्रय विनियमन अधिनियम 2014 को कैसे लागू किया जाए, इसके बारे में दिनांक 6 जून 2019 को एक परिपत्र जारी किया. मनपा के अधिकारियों ने इस परितत्र पर विचार तक नहीं किया। विचार न करने के कारण वे ही अच्छी तरह जानते हैं।

सबसे बड़ा मुद्दा यह है की जब तक सरकार द्वारा अन्य श्रेणी में नामांकन के बिना फेरीवालों के प्रतिनिधियों के चुनाव के लिए चुनाव कैसेकिया जा सकता है। महाराष्ट्र पथ विक्रेता नियम 2016 की धारा 11(2) (बी) (ii) की पूर्ति किये किए बिना प्रशासन नियम 2016 की धारा 14 के अनुपालन के लिए कैसे आगे बढ़ सकता है? मनपा अपने सहूलियत के आधार पर कानून के प्रावधानों को लागू नहीं कर सकती है. एक बार नामंजूर किए गए नामों को कैसे वापस लिया जा सकता है?

दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार ने दिनांक 26/10/2021 को केवल दो नामों कौस्तुब चटर्जी और  विनोद तायवाडे को एनजीओ/सीबीओ की श्रेणी से मंजूरी दी है। इसकी जानकारी मा.नागपुर उच्च न्यायालय को भी दी गई थी।

राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित नागपुर टाउन वेंडिंग कमेटी की राजपत्र अधिसूचना को देखकर यूनियन चौंक गयी, क्यूंकि नगर विक्रय समिति जो 20 सदस्यों की होनी चाहिए थी लेकिन 18 सदस्यों की है। इसका मतलब है कि यह एक अधूरा टीवीसी है इसलिए धारा 22 के तहत निर्दिष्ट टीवीसी नहीं माना जा सकता है. और तो और कुछ नामो को भी राज्य सरकार ने परस्पर बदल दिया जबकि राज्य सर्कार को कोई अधीर ही नहीं है.

यूनियन ने निवेदन के मध्यम से जो सवाल उठायें है वे इस प्रकार हैं:-

1). 20 जुलाई 2017 को शुरू की गई टीवीसी के गठन की प्रक्रिया को बीच में ही क्यों छोड़ दिया गया?

2). मनपा के अधिकारियों ने टीवीसी के पद सिद्द सदस्यों एवं समय समय पर मनपा अधियकरीओं की किसी भी बैठक में वर्ष 2017 में उच्च न्यायालय की मुंबई खंडपीठ की मुख्य पीठ द्वारा पारित आदेश की जानकारी क्यों नहीं दी गयी?

3). मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ को वर्ष 2017 में मुंबई खंडपीठ की प्रधान पीठ द्वारा पारित आदेश के बारे में सूचित क्यों नहीं किया गया था ?

4). मनपा अधिकारी ने नागपुर उच्च न्यायालय में दिनांक 15 जुलाई 2019 को एक भ्रामक, विरोधाभासी और झूठा हलफनामा क्यों दायर किया है?

5). आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा 6 जून 2019 को जारी परिपत्र की संज्ञा क्यों नहीं ली गई?

6). मनपा के अधिकारियों ने न तो पथ विक्रेता कानून 1014 को लागू किया और न ही मुंबई उच्च न्यायालय के मुख्य रिट याचिका 652/2017 में दिए गए आदेश का तुरंत अनुपालन क्यों नहीं किया गया?

7). एक बार अन्य श्रेणी से नामों को अंतिम रूप देने के बाद उन्हें कैसे बदला जा सकता है? एक अपरिपूर्ण टीवीसी अपना कारोबार कैसे चला सकता है?

प्रतिनिधि मंडल ने मांग की की 1) आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा दिनांक 6 जून 2019 को दिए गए निर्देशों को लागू करे. 2) पथ विक्रेता कानून 2014 के मुताबिक फुटपाथ दुकानदारों का नया सर्वेक्षण करे. 3) तब तक पथ विक्रेताओं के विरूद्ध विक्रेता अधिनियम 2014 की धारा 3(3) के अनुसार कोई कार्यवाही स्थगित करे. प्रतिनिधि मंडल में भाई जम्मू आनंद के अलावा  शिरीष फुलझले, कविता धीर, किरण वर्मा, तथा युवा के नितिन मेश्राम उपस्तिथ थे.

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